कविता

कविता

ये भी जरूरी था
वो भी जरूरी था
जो बीत गया
उस पल में
क्या जरूरी है ।
जरूरी है
आने वाला पल
जिसमे न रंजो गम
न सिकन
सब कुछ
सही करने का दम
जिंदगी के पेचोखम
सुलझाने से सुलझते है ।
जरूरी है
इस बात को समझना ।
हर दाग को धोना
हर रिश्ते को जीना ।
जरूरी है ……

धर्म पाण्डेय

One thought on “कविता

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

Comments are closed.