कविता

हम तुम्हारे लिए, तुम हमारे लिए

हम  तुम्हारे लिए,तुम हमारे लिए

जन्मों -जन्मों की सौगंध खाएं प्रिये !

एक पल के लिए भी न हों दूरियां ,

चाहे जैसी भी जितनी हों मजबूरियां

आरती के दिए , हाथ में हम लिए ,,

जन्मों-जन्मों की सौगंध खाएं प्रिये !

हम तुम्हारे लिए तुम…….

चांदनी रात हो, आपका साथ हो,,

दिल से दिल भी मिले, बात से बात हो

और क्या चाहिए,ज़िन्दगी के लिए

जन्मों- जन्मों की सौगंध खाएं प्रिये !

हम तुम्हारे लिए, तुम हमारे लिए

जन्मों- जन्मों की सौगंध खाएं प्रिये  !

शुभदा बाजपेयी छतरपुर नई दिल्ली

2 thoughts on “हम तुम्हारे लिए, तुम हमारे लिए

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहन जी , अगले जनम का तो मुझे पता नहीं लेकिन इस जनम में हम ने ऐसी ही जन्दगी जी है और जी रहे हैं . हमारी शादी को ४८ वर्ष हो गए हैं और आखिर तक हम ऐसे ही जिंदगी का लुत्फ उठाते रहेंगे .

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