गज़ल
यूहीं मुस्काते हैं इक अदा से वो आजकल
जैसे चिढ़ाते हैं गरूर मे सबको आजकल
जाने क्या दिल मे है हलचल कोई आजकल
खुद से भी दिखते हैं कभी तो बतियाते आजकल
महफिल की शान कभी कहाने वाले वो मगर
दिखते हैं गुनगुनाते सुनसान सड़को पे भी आजकल |||
कामनी गुप्ता जम्मू ***
वाह !
Thanks ji
Thanks sirji
umda
शुक्रिया
Thanks ji