सपोर्ट
कोई नरेन्द्र मोदी को सपोर्ट कर रहा है तो कोई केजरीवाल को। क्या ! जी नहीं, पप्पू को कोई सपोर्ट नहीं कर रह है । मैं तो अपने नेताजी, जिन्हें लोग प्यार से मौलाना भी कह देते हैं, को सपोर्ट करता हूँ क्योंकि मेरा मानना है और दुनिया वालों का भी कहना है कि सेवा घर से शुरू होती है। पहले मात-पाता की सेवा, फिर पत्नी और फिर स्वजनों की सेवा । धीरे धीरे यह दायरा बढ़ता है और गली मोहल्ले से निकल कर जिला, प्रदेश को लपेटता हुआ तब कहीं जा कर देश तक पहुँचता है। छोटा बच्चा बड़ों के बराबर कब खा पाता है ! धीरे धीरे ही तो पेट बढ़ता है ! खाने की विविधता बढ़ती है, भूख बढ़ती है !
ठीक ऐसे ही, दायित्वों का निर्वाह भी बढ़ता है। पहले अपने घर के दायित्व निभाना सीखते हैं, फिर अपने आफिस और बढ़ते बढ़ते प्रदेश और देश के दायित्व निभाने लायक हो सकते हैं। पैदा होते ही क्या कोई जिलाधिकारी बन सकता है ? नहीं न ! और मेरा भी मानना है कि जो घर का न हुआ वो देश दुनिया का क्या हो सकेगा। आप ही बताइये कि क्या कोई है जिसमें ‘नेताजी’ के बराबर दायित्व निभाने की क्षमता हो ? अपने बेटे-बेटी, भाई-भतीजे, बहनें-बहुएँ, रिश्ते-नाते के, अड़ोसी-पड़ोसी, यहाँ तक की पेट मैं पलने वाले बच्चों तक का खयाल करना क्या आसान बात है ! अगर कोई बचा है तो, घर की गाय-भैंसें और कुत्ते-बिल्ली । और अब इन्हीं का नम्बर है। जानवर हैं बेचारे और अभी वो कानून बनना बाकी है जब इन्हें भी चुनावी टिकट दिया जा सकेगा, वर्ना यह सब भी आज कम से कम ‘दर्जा प्राप्त’ तो होते ही ।
सपोर्ट करने की बात करते हैं लोग !
है…है….है…. बढ़िया ! इस व्यंग्य को थोडा और विस्तार दिया जा सकता था.