कविता

बाबुल की सीख

बेटी ब्याह के जब पराए घर जाती है |
सीख अपने बाबुल से यही लेकर जाती है |
अब खत्म तुम्हारी मनमानी हो गई है |
शुरू तुम्हारी इक नई कहानी हो गई है |
कदम हर अपना सोच समझ कर उठाना |
बाबुल का सदा अपने तुम मान बड़ाना |
अब साथ हमारा तुमसे खत्म होता है |
आगे का सफर तय तुम्हे खुद करना है |
सही गल्त को सोच समझ कर चुनना है |
तुम्हारे किसी फैसले से उन्हें दुख ना पहुंचे |
वो भी तो हैं पलकों में कितने सपने सजाए हुए |
स्वागत मे तुम्हारी देखो आँखें बिछाए हुए |
शान तुम्हें उनकी अब बनना है मान तुम्हें उनका करना है |
यहाँ बड़ों के साथ मिलजुल कर प्यार से तुम्हें रहना है |
है ससुराल तुम्हारा उसे अपना तुम्हें अब बनाना है |||
कामनी गुप्ता जम्मू

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

4 thoughts on “बाबुल की सीख

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता !

    • कामनी गुप्ता

      धन्यवाद सर जी..

  • Vivek Bharti

    very good. great

    • कामनी गुप्ता

      Thanks ji

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