कविता
समाज से बड़कर बस अपना थोड़ा सा स्वार्थ हो गया |
चन्द पैसों और ज़मीन के लिए अपनों मे कितना विवाद हो गया |
एक दूजे को देते दोष हर बात दूसरे पे इल्ज़ाम हो गया |
देश की सोच कब करनी जब मौहल्ले मे बेतलब संग्राम हो गया |
समाज से बड़कर बस अपना थोड़ा सा स्वार्थ हो गया |
पूछती है धरती माँ ,भारत माँ क्या देश का अपने हाल हो गया |
गैरों से क्या बचाओगे मुझे जब अपनों का बुरा हाल हो गया |
हर भारतवासी बड़ाएगा जिस दिन देश की शान ,
उस दिन लगेगा कि मेरा भारत अब महान हो गया |||
कामनी गुप्ता ***
बढ़िया !
Thanks sirji
very good poem.
Thanks ji