ग़ज़ल : मुसीबत यार अच्छी है
मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना, रंग अपना बदलता है
किसकी कुर्बानी को किसने याद रक्खा है दुनिया में
जलता तेल और बाती है कहते दीपक जलता है
मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है
उसकी यादों का दिया अपने दिल में यार जलता है
बैसे जीवन के सफर में तो कितने लोग मिलते हैं
किसी चेहरे पे अपना दिल अभी भी तो मचलता है
समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है
मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना, रंग अपना बदलता है
— मदन मोहन सक्सेना
ग़ज़ल अच्छी लगी .
बहुत सुंदर !