लघुकथा

लघुकथा : सोच

सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त आदमी को देखकर भीड़ तरह-तरह की बातें बना रही थी —

“हाय राम! कितनी बेदर्दी से कुचल गया है ट्रक वाला इसे, शायद ही बचेगा।”

“आग लगा दो ट्रक वाले को… साले अन्धे होकर चलते हैं।”

“बहुत ख़ून बह गया है बेचारे का।”

“अरे कोई हास्पिटल ले चलो बेचारे को शायद बच जाये।”

“अरे भाईसाहब आप तो टैक्सी वाले हैं।”

“तो फिर …”

“फिर क्या आप अपनी टैक्सी में बिठाकर ले चलिए उसे अस्पताल?”

“इसके ख़ून से जो सीटें खराब होंगी, उसकी धुलाई के पैसे क्या तेरा बाप देगा?”

“ओये भैन के … तमीज़ से बोल वरना अभी मिनट में रामपुरी अन्दर कर दूंगा।”

“अरे भाईसाहब, आप लोग क्यों लड़ रहे हो? मैंने एम्बुलेंस और पुलिस वालों को फोन कर दिया है। बस थोड़ी देर में आ जायेंगे।”

“चलो-चलो, सब भीड़ मत लगाओ। ऐसे हादसे तो होते ही रहते हैं।”

इसी तरह भीड़ हटती और छंटती रही। सभी लोग दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति का तमाशा देखते रहे। किसी ने ये नहीं सोचा कि किसी रास्ते या मोड़ पर उनमे से किसी के साथ ऐसा ही कोई हादसा पेश आ सकता है और फिर वहां भी मौजूद होगी, ऐसी ही सोच! ऐसी ही न खत्म होने वाली बातें!

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६

3 thoughts on “लघुकथा : सोच

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    भारत में यह आम बात है , कोई इस में इन्वॉल्व नहीं होना चाहता किओंकि जो हषर पोलिस करती है उस से सभी डरते हैं , यह बहुत दुर्भाग्य वाली बात है ,इस के विपरीत यहाँ इंग्लैण्ड में छोटा सा हादसा हो जाए ,दर्जनों लोग मदद के लिए आ जाते हैं और तब तक नहीं जाते जब तक कि पोलिस और साथ ही एम्बूलैंस ना आ जाए . किसी भी दुर्घटना में पोलिस तो आती ही है साथ ही एम्बुलेंस आ जाती है .

    • विजय कुमार सिंघल

      भाई साहब, हमारा भारत महान है। यहाँ पिज़्ज़ा २० मिनट में आ जाता है लेकिन एम्बुलेंस दो घंटे में भी नहीं आती।

  • विजय कुमार सिंघल

    यथार्थ को व्यक्त करती लघु कथा !

Comments are closed.