गीतिका : चाँद आया था…..
चाँद आया था मेरे साथ-साथ बाग में
विस्मित हो जा छुपा रंगों की फाग में ॥
उछलता रहा रात भर वो वल्लरियों में
थका हारा जा गिरा झरनों के झाग में ॥
उड़तीं रहीं तितलियाँ पराग की प्यास में
झूमती रहीं वो दर-बदर प्रेम के राग में ॥
नाचती रही चाँदनी बिन थके हुए बाग में
उबटन घिसता रहा चाँद अपने दाग में ॥
चटकतीं रहीं कलियाँ प्रणय के खेल में
डूबती रही मन रागिनी मंजु सुहाग में ॥
— कल्पना मिश्रा बाजपेई