कविता

~~सहा बहुत है अब ना सहेगें ~~

सहा बहुत है अब ना सहेगें ,
आँसू बनकर अब ना बहेंगे |
ले किवाड़ की ओट अब ना सुबकेगें ,

दीवारों की ओट में अब ना दुबकेगें |
ना बनेगें पांचाली ना ही सीता ,
ढालेगें अब हम स्वंय में गीता |
कष्टों की धारा ना अपनी ओर बहने देगें ,
पुरुषों को नारी अबला है ना यह कहने देगें|
शासित हुयें है हमेशा अब ना होंगे,
ईट का जबाब हम अब पत्थर से देगें|
किये है बहुत सारी गल्तियाँ अब ना करेगें,
झुक लिए बहुत अब नहीं झुकेगें |
जिस कमजोरी का उठाते थे फायदा ,
उसको हमारी ताकत बना दे ओ मेरे खुदा |
|| सविता मिश्रा |

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|