कविता

संवाद

माँ ओ माँ,
मैं बोल रही हूँ
तेरे गर्भ में रोपित एक बीज,
जिसे उसका माली ही
मिटाना चाहता है,
क्या करुँगी पैदा हो माँ ?
मम आत्मजा,
तू बीज चाहे पिता का हो
पर तेरी धरा मैं हूँ,
अपने रक्त से सींचती
मैं करुँगी तेरी रक्षा,
मेरी माँ ने भी मुझे जन्म दिया
तुझे जन्म दे मैं उसका क़र्ज़ चुकाउंगी,
हे जननी
सुना है धरती पर
लाक्षग्रह बहुत है,
और उसमे द्रौपदी
ही झुलसती है हर बार,
हर सीता धरती में
बोझ सी समा जाती है,
राम के लिए बार बार?
हे सुता,
तुम जन्मीं नहीं भूमि से
तुम्हें जन्म देने को
मैं मरूंगी  कई बार,
शायद तुम्हारे आगमन पर
नहीं गूंजेगी थाली बजने की आवाज,
न सोहर होगा
तो क्या हुआ,
तेरी किलकारियाँ हैं
इन सबके ऊपर,
पर मैं तुझे द्रौपदी या सीता
नहीं बनाउंगी मेरी बच्ची,
किसी भी अहं के लाक्षागृह में
ना झुलसने दूंगी तुझको,
सीता की तरह किसी की मर्यादा
की भेंट न चढ़ने दूंगी तुझको,
दुनिया से लड़ना सिखाउंगी
हर अच्छा संस्कार तुझे दे,
अपनी माँ के संस्कारों का
क़र्ज़ चुकाऊँगी,
हे जनयत्री,
क्या फायदा मेरे आने का
जो मैं ख़्वाब  ना देख पाउंगी,
काँच के बुत की तरह
अंधेरों में घुट  रह  जाउंगी,
रात हो या दोपहर
शाम हो या सहर,
सहमी सी ज़िंदगी पाउंगी ?
हे आत्मजा,
रख भरोसा अपनी माँ पर
तेरे ख़्वाबों को इंद्रधनुषी रंगों से सजाऊँगी,
तेरे सब दुख सुख बाटूँगी
अपना बटाऊँगी,
चलूँगी तेरे साथ पर
तुझे तेरे पदचिन्हों से
नयी राह बनाना सिखाउंगी,
कल्पनाओं के क्षितिज पर
तेरे ख्वाबों को सजाऊँगी,
जरूर थामे रहूंगी वो हाथ
जो तुम्हारे सर पर
नंगी तलवार थामे खड़े हैं,
बस ज़रा सा सब्र तो कर
तुझे दुनिया से जीतता देख,
अपनी माँ के ख़्वाबों को पंख लगाउंगी,
हे तनया,
तू मेरा अंश है
मैं तेरे लिए हर ताप – आताप सहूंगी,
बिना परवाह किये उस दशा की
जो तुझे दिशा देने में मिलने वाली है,
क्यूंकि मैंने भी अब
सीख लिया है
शिव के धनुष को
तोड़ना।।।।।
________प्रीति दक्ष

प्रीति दक्ष

नाम : प्रीति दक्ष , प्रकाशित काव्य संग्रह : " कुछ तेरी कुछ मेरी ", " ज़िंदगीनामा " परिचय : ज़िन्दगी ने कई इम्तेहान लिए मेरे पर मैंने कभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और आगे बढ़ती गयी। भगवान को मानती हूँ कर्म पर विश्वास करती हूँ। रंगमंच और लेखनी ने मेरा साथ ना छोड़ा। बेटी को अच्छे संस्कार दिए आज उस पर नाज़ है। माता पिता का सहयोग मिला उनकी लम्बी आयु की कामना करते हुए उन्हें नमन करती हूँ। मैंने अपने नाम को सार्थक किया और ज़िन्दगी से हमेशा प्रेम किया।

4 thoughts on “संवाद

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर कविता !

    • प्रीति दक्ष

      aabhaar vijay ji aapka ..

  • Man Mohan Kumar Arya

    बहुत अच्छी, प्रेरणादायक, सुधार भावना लिए हुए, सामयिक एवं प्रासंगिक रचना। धन्यवाद।

    • प्रीति दक्ष

      bahut bahut dhnywaad man mohan ji .. kavita pasand karne ke liye..

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