अब तुम्हारे साथ रहने को दिल करता है,
साथ में रहकर हँसने को दिल करता है,
जब दूर रहना था हम दोनों को यहां पर,
तो हम एक दूसरे के साथ क्यों रहता है
रमेश कुमार सिंह /२४-०२-२०१५
जीवन वृत्त-:
रमेश कुमार सिंह "रुद्र"
✏पिता- श्री ज्ञानी सिंह, माता - श्रीमती सुघरा देवी।
पत्नि- पूनम देवी, पुत्र-पलक यादव एवं ईशान सिंह
✏वंश- यदुवंशी
✏जन्मतिथि- फरवरी 1985
✏मुख्य पेशा - माध्यमिक शिक्षक ( हाईस्कूल बिहार सरकार वर्तमान में कार्यरत सर्वोदय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सरैया चेनारी सासाराम रोहतास-821108)
✏शिक्षा- एम. ए. अर्थशास्त्र एवं हिन्दी, बी. एड.
✏ साहित्य सेवा- साहित्य लेखन के लिए प्रेरित करना।
सह सम्पादक "साहित्य धरोहर" अवध मगध साहित्य मंच (हिन्दी)
राष्ट्रीय सचिव - राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन मध्यप्रदेश,
प्रदेश प्रभारी(बिहार) - साहित्य सरोज पत्रिका एवं भारत भर के विभिन्न पत्रिकाओं, साहित्यक संस्थाओं में सदस्यता प्राप्त।
प्रधानमंत्री - बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन इकाई सासाराम रोहतास
✏समाज सेवा - अध्यक्ष, शिक्षक न्याय मोर्चा संघ इकाई प्रखंड चेनारी जिला रोहतास सासाराम बिहार
✏गृहपता- ग्राम-कान्हपुर,पोस्ट- कर्मनाशा, थाना -दुर्गावती,जनपद-कैमूर पिन कोड-821105
✏राज्य- बिहार
✏मोबाइल - 9572289410 /9955999098
✏ मेल आई- [email protected][email protected]
✏लेखन मुख्य विधा- छन्दमुक्त एवं छन्दमय काव्य,नई कविता, हाइकु, गद्य लेखन।
✏प्रकाशित रचनाएँ- देशभर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में एवं साझा संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित। लगभग 600 रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं तथा 50 साझा संग्रहों एवं तमाम साहित्यिक वेब पर रचनाये प्रकाशित।
✏साहित्य में पहला कदम- वैसे 2002 से ही, पूर्णरूप से दिसम्बर 2014 से।
✏ प्राप्त सम्मान विवरण -: भारत के विभिन्न साहित्यिक / सामाजिक संस्थाओं से 125 सम्मान/पुरस्कार प्राप्त।
✏ रूचि -- पढाने केसाथ- साथ लेखन क्षेत्र में भी है।जो बातें मेरे हृदय से गुजर कर मानसिक पटल से होते हुए पन्नों पर आकर ठहर जाती है। बस यही है मेरी लेखनी।कविता,कहानी,हिन्दी गद्य लेखन इत्यादि।
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आपका सुझाव ,सलाह मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत है
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2 thoughts on “साथ-साथ”
यह क्या है? अंतिम पंक्ति बिल्कुल बेमेल लगती है। यह मुक्तक नहीं कहा जा सकता।
यह क्या है? अंतिम पंक्ति बिल्कुल बेमेल लगती है। यह मुक्तक नहीं कहा जा सकता।
सुझाव के लिए धन्यवाद!देखते हैं