पगडंडी –छाया चित्र
और कुछ पल बाद,
एक साल
और कम हो जाएगा
तेरे मेरे बीच की दूरियां
निरंतर कम हो रही हैं
ठीक ही तो है
देखूं जरा अवनी पर
पुलकित हो रजनी पर
चन्द्र किरण आई हैं
चाँदी की चुनर ओढ़
प्रीतम से नयन जोड़
बरबस मुस्काई हैं
खिड़की की ओट खड़ी
कौतुक से देखरही
संदेशा लाई हैं
पंछी का कलरव
पपीहरा की पीहू
कोकिला की कुहुक
भौंरों की गुनगुन
अरे यह क्या,
कौन खिलखिलाया
मधुर हास
कोई नन्ही कली
हाँ शायद
नई है
अनजान है
सुबह कोई आयेगा
तोड़ लेगा
गूँथ लेगा माला में
या सजा लेगी
कोई बाला फिर
घुंघराले बालों में
अन्त तोआना है
मसला ही जाना है
किसी के हाथमें
या बहके कदमों में
खबरा कर मैंने
मूँद ली हैं आँखें
क्या सचमुच
कल सुबह होगी
उगेगा सूरज
कली खिल पायेगी
दो बूंद ढुलक गई
आँखें छलक गई
बेबस सीत्कार
ओठ की कोर पर
हल्की सिसकारी बन
मन को निचोड़ कर
चुपके से निकल गई
पगडंडी पैरों को
फिसला कर
खिसक गई
ज़िन्दगी
मुझको
इक
अनजाने रस्ते पर
धकिया कर
लपक गई
लता यादव
बहुत अछे .