राज़े उल्फत
कहीं छुप – छुप के यूँही मुस्काता है कोई |
खुल ना जाए राज़े उल्फत इसलिए चुप रहता है कोई |
यूंही अठखेलियां कभी ,कभी आँखमिचौली नयनो की करता है कोई |
कभी मिलकर भी यूंही खामोश सा रहता है कोई |
कभी चुपके से मिलने की दुआ करता है कोई |
खुल ना जाए……..
हैं वाकिफ अब नज़ारे भी उसकी हर अदा से कि|
यूंही सताने के नए – नए बहाने ढूंढता है कोई |
खुल ना जाए राज़े उल्फत इसलिए चुप रहता है कोई |||
— कामनी गुप्ता
अच्छी रचना।