कविता

राज़े उल्फत

कहीं छुप – छुप के यूँही मुस्काता है कोई |
खुल ना जाए राज़े उल्फत इसलिए चुप रहता है कोई |
यूंही अठखेलियां कभी ,कभी आँखमिचौली नयनो की करता है कोई |
कभी मिलकर भी यूंही खामोश सा रहता है कोई |
कभी चुपके से मिलने की दुआ करता है कोई |
खुल ना जाए……..
हैं वाकिफ अब नज़ारे भी उसकी हर अदा से कि|
यूंही सताने के नए – नए बहाने ढूंढता है कोई |
खुल ना जाए राज़े उल्फत इसलिए चुप रहता है कोई |||

कामनी गुप्ता

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

One thought on “राज़े उल्फत

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी रचना।

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