लघुकथा

तुलसी का चौंरा-लघुकथा

वो लगातार पाँच दिनों से शोभना के व्यवहार पर गौर कर रहा था। उससे हर पल बतियाने वाली, आते जाते निहारने, नज़रों से दुलराने वाली, उससे बात किए बिना बेचैनी से दिन बिताने वाली शोभना कैसे इतनी बदल गई है, यह उसकी समझ से परे था। प्रतिदिन सोचता शायद अधिक व्यस्त होगी, पर नहीं, व्यस्त होती तो अपनी सहेलियों से घंटों बातें न करती। शायद कहीं जाने की जल्दी रहती होगी, यह भी नहीं हो सकता! उसे उसने एक बार भी घर से बाहर जाते नहीं देखा। शायद…! वो हर पल उसे निहारता और सोचता कि वो इतनी निष्ठुर क्यों हो गई? इतने दिन से न भोजन दिया है न ही पानी।  उसे पता है कि मैं गूंगा हूँ, बुला नहीं सकता, लँगड़ा हूँ, चल नहीं सकता। आखिर इस तरह कितने दिन जीवित रहूँगा।

वह सोच ही रहा था कि अचानक देखा शोभना उसकी तरफ आ रही थी। गौर किया तो देखा उसके एक पैर में पट्टी बँधी हुई है, वह दंग रह गया। शोभना को यह क्या हो गया? कब और कैसे हुआ? कई सवाल उसकी आँखों में तैरने लगे। शायद तकलीफ के कारण ही उसने इतने दिन उसके बिना बिता दिये। पर आज?…  अचानक सुगंधित हवा का एक झोंका हवा में फैल गया।  चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ें आने लगीं। आसमान से काले बादल छंट चुके थे और सूर्य की शीतल किरणें जगमगा रही थीं। देखते देखते शोभना ने भरे गले से अपनी आँखों के आँसू पोंछे और उसे प्यार से पानी पिलाते हुए बताने लगी कि किस तरह उस दिन उसके पास आने की जल्दी में अचानक जल का लोटा गिरने से पाँव फिसल गया और वो इतने समय उससे दूर हो गई। वो क्या उसके बिना एक दिन भी रह सकती है? सारी बातें सुनते ही प्रफुल्लित होकर झूमने लगा वो “तुलसी का चौंरा”!

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]

4 thoughts on “तुलसी का चौंरा-लघुकथा

  • गुंजन अग्रवाल

    bahut khub

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कुछ भी हो ,लघु कथा अच्छी लगी .

  • विजय कुमार सिंघल

    यह डायरी का मन लघुकथा का परिवर्तित रूप है।

    • कल्पना रामानी

      जी हाँ! कुछ संशोधन किया है, मैंने इनबॉक्स में भी मैसेज दिया है

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