जीवनपर्यंत
प्रतिक्षण,
प्रतिपल,
प्रतिदिन,
मेरे हृदय के दीपक धिरे-धिरे जल।
मेरे प्रिये का पथ अलोकित कर।
मृदु आभास,
अपरिमित,
जीवन का अणु,
तुम धुप की तरह फैलाओ पंख।
मन्द-मन्द दीपक की लौह जल।
विश्वसुलभ,
जल पाया,
ज्वाला कण,
सभी शीतलता एवं कोमलता का नूतन।
तुम मेरे जीवन में नित्य प्रस्फुटित कर।
अग्नोन्मुख
जीवन पर्यंत,
अग्रसर कर।
@रमेश कुमार सिंह