आत्मकथा

आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 15)

मनीषा का विवाह

सन् 2000 में कानपुर वाले भाईसाहब श्री सूरजभान की दूसरी पुत्री मनीषा का विवाह निश्चित हुआ। वह झाँसी मेडीकल कालेज से एम.बी.बी.एस. कर चुकी थी, परन्तु पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में एडमीशन न होने के कारण लगभग बेरोजगार थी। उसका विवाह उसकी बड़ी बहन डा. समीक्षा के ननदेऊ श्री अश्वनी कुमार गुप्ता ने तय कराया था। उसकी सगाई होने की तारीख तय हो चुकी थी और आगरा से डा. समीक्षा तथा उसके पति डा. अनुपम भी आ गये थे। परन्तु भाईसाहब ने इस कार्यक्रम में हमें नहीं बुलाया। हमें तो कुछ पता ही नहीं था कि क्या हो रहा है। जब सगाई का कार्यक्रम पूरा हो गया, तब दूसरे दिन भाईसाहब ने हमें मिठाई भिजवायी।

हमें उसका विवाह तय होने की प्रसन्नता थी, परन्तु अपनी उपेक्षा पर बहुत गुस्सा भी आया। पूरे खानदान से केवल हमारा परिवार कानपुर में था, इसलिए हमें जरूर बुलाना चाहिए था। परन्तु भाईसाहब ने बहाना बनाया कि कार्यक्रम अचानक तय हुआ था और बुलाने का समय नहीं था। यह बात भी झूठ थी, क्योंकि ऐसे कार्यक्रमों की तैयारी में ही घंटों लग जाते हैं और केवल एक बार फोन कर देने पर मात्र 15 मिनट में हम पहुँच सकते थे। संयोग से मुकेश भी उस दिन कानपुर में ही था और यह बात भाईसाहब को मालूम थी, क्योंकि वह भी डा. समीक्षा और डा. अनुपम के साथ ही आगरा से उसी गाड़ी में आया था। परन्तु उसको भी नहीं बुलाया गया और न कुछ बताया गया। यह एक प्रकार से हमारा अपमान ही था। इसलिए मैंने तय कर लिया कि मैं मनीषा की शादी में नहीं जाऊँगा और न शादी का कोई काम करूँगा। परन्तु जब विवाह का दिन आ गया और आगरा-मथुरा से ढेर सारे रिश्तेदार भी आ गये, तो लोकलाज के कारण मजबूरी में मुझे भी जाना पड़ा। वैसे भी बीमार आदमी का दिल दुखाना अच्छा नहीं होता।

मकान मालिक के पुत्र की समस्या

मैं ऊपर लिख चुका हूँ कि हमारे मकान मालिक श्री एन.के. सिंह के एक मात्र पुत्र थे श्री अनिल कुमार सिंह। वे वकील थे, परन्तु उनकी वकालत कभी चली नहीं। वे प्रायः हर समय तम्बाकू वाला पान-मसाला चबाया करते थे और रात को दोनों बाप-बेटे मिलकर दारू पिया करते थे। दारू पीने के बाद प्रायः चढ़ जाती थी और आपस में अनाप-शनाप बोला करते थे। ऐसे ही एक दिन बाप-बेटे में तकरार हो गयी। बेटे ने बाप को बहुत गालियाँ दीं। उनकी माँ (आंटी जी) बीच में आयीं तो उनका भी अपमान किया। तब उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया। पुलिस आयी, तो उनके सामने भी अनिल जी अनाप-शनाप बोलने लगे। तब एक पुलिस आॅफीसर ने उनको एक थप्पड़ मार दिया। थप्पड़ खाकर उस समय तो वे शान्त हो गये, परन्तु पुलिस वालों के जाने के बाद अपनी माँ को बहुत मारा कि पुलिस को बुलाकर मुझे क्यों पिटवाया। हमारी बिल्डिंग के एक अन्य किरायेदार श्री रमेश चन्द्र शर्मा (जो शिवानी वाले फ्लैट में आये थे) ने किसी तरह अन्दर जाकर उनकी माँ को बचाया। हमें डर था कि क्रोध में कहीं वे अपनी माँ की हत्या ही न कर दें।

इस कांड के अगले दिन ही आंटी जी और अंकल जी दोनों वह घर छोड़कर आजाद नगर चले गये। वहाँ उनके पास एक और कोठी थी, जो उस समय खाली पड़ी थी। इस कांड की खबर उनके छात्रों को भी लग गयी और उन्होंने अशोक नगर आकर अनिल जी को धमकाया कि अगर आगे माँ-बाप के साथ कोई बदतमीजी की, तो तुम्हारी बहुत ठुकाई करेंगे। दूसरे रिश्तेदार भी आये और उन्होंने भी ऐसी ही धमकी दी। इससे अनिल जी डर गये और अपनी पत्नी डा. रेणु तथा दो-तीन साल की बच्ची को लेकर बाहर निकल गये। वे जाने कहाँ-कहाँ गये और जब बहुत परेशान हो गये, तो उन्होंने माफी माँगते हुए एक लम्बा पत्र अपने पिता को लिखा। अंकल जी और आंटी जी उनको माफ करने के मूड में नहीं थे, क्योंकि क्या पता कब उनका दिमाग फिर बिगड़ जाये।

एक दिन हम भी आजाद नगर अंकल जी और आंटी जी से मिलने गये। वहाँ हमें सारी बातें पता चलीं और हमने अनिल जी का पत्र भी पढ़ा, तो हमें उन पर बहुत तरस आया। मैंने अंकल जी और आंटी जी को समझाया कि हमारे कहने से बस एक बार उनको माफ कर दीजिए। मैंने खास तौर से उनकी पोती का जिक्र किया और कहा कि उसकी भलाई के लिए अनिल जी को माफ करना ही ठीक रहेगा, वापस आ जाने पर मैं अनिल जी को भी समझा दूँगा। हमारे द्वारा काफी समझाने के बाद वे उनको माफ करने को तैयार हो गये और कुछ दिन बाद फिर सभी अशोक नगर वाले घर में आ गये। सौभाग्य से इसके बाद उस घर में कलह होना बन्द हो गया, जो कि पहले प्रायः प्रतिदिन हुआ करती थी। कलह केवल बाप-बेटे में ही नहीं, बल्कि अनिल जी और उनकी पत्नी डा. रेणु में भी हुआ करती थी। डा. रेणु उनको बहुत गन्दी-गन्दी गालियाँ दिया करती थीं। एक बार तो हम मकान बदलने के बारे में भी सोचने लगे थे, क्योंकि इस कलह का हमारे बच्चों के विकास पर बुरा असर पड़ सकता था। लेकिन जब कलह बन्द हो गयी, तो हमने संतोष की साँस ली। वैसे वे सभी अंकल जी, आंटी जी, अनिल जी और डा. रेणु भी हमारी बहुत इज्जत किया करते थे और हमें उनसे कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं थी।

दीपांक का एडमीशन

हमारा पुत्र दीपांक सनातन धर्म सरस्वती शिशु मंदिर, कौशलपुरी में कक्षा 5 तक पढ़ा। अप्रैल सन् 2000 में वह 5 की परीक्षा दे रहा था। वहाँ इससे आगे पढ़ाई की व्यवस्था नहीं थी। पास में जो सरस्वती विद्या मंदिर था, वह अच्छा नहीं था। इसलिए हमने कक्षा 6 में उसका प्रवेश किसी अन्य अच्छे विद्यालय में कराने का विचार बनाया। उस समय कानपुर में दो विद्यालय बहुत प्रतिष्ठित थे- एक, दीनदयाल उपाध्याय इंटर कालेज, आजाद नगर और दूसरा, बी.एन.एस.डी. शिक्षा निकेतन, आर्य नगर। इन दोनों ही विद्यालयों में गिनी-चुनी सीटें होती थीं, जबकि प्रवेश लेने के इच्छुक छात्र-छात्राओं की संख्या हजारों में होती थी। इसलिए कड़ी प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद ही इनमें प्रवेश मिलता था।

प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए हमने किसी आचार्य की सेवाएँ लेने का विचार किया। दीपांक के विद्यालय के ही एक आचार्य श्री महेश चन्द्र पांडेय ने हमसे सम्पर्क किया और कहा कि मैं केवल दो माह में इसकी तैयारी करा दूँगा। हम राजी हो गये। उन्होंने दीपांक को अच्छी तैयारी कराई। इसके अलावा मुझे ज्ञात हुआ कि बी.एन.एस.डी. शिक्षा निकेतन के प्रधानाचार्य श्री अंगद सिंह हमारे बैंक के एक कर्मचारी नेता श्री पी.एन. सिंह के घनिष्ट मित्र हैं और अगर वे सिफारिश कर दें, तो प्रधानाचार्य उनकी बात नहीं टालेंगे। एक दिन मैंने श्री पी.एन. सिंह से इसका जिक्र किया और कहा कि वैसे तो हम अच्छी तैयारी करा रहे हैं, लेकिन अगर आप भी कह दें तो एडमीशन पक्का हो जाएगा। उन्होंने मुझे इसका आश्वासन दिया और कहा कि एडमीशन अवश्य हो जाएगा।

खैर, परीक्षा वाले दिन ही श्री महेश पांडेय ने हमारी श्रीमती जी को बता दिया कि मिठाई की तैयारी कर लो। जब रिजल्ट आया तो उनकी बात सत्य निकली। श्री पांडेय ने दीपांक के साथ ही एक अन्य छात्र सौरभ निगम की भी तैयारी कराई थी। उन दोनों का ही एडमीशन बी.एन.एस.डी. में हो गया। हमने श्री महेश पांडेय को उनके पारिश्रमिक और मिठाई के साथ ही उनकी पत्नी के लिए एक साड़ी भी भेंट की। वैसे श्री पी.एन. सिंह ने भी अपने वायदे के अनुसार प्रधानाचार्य श्री अंगद सिंह से हमारे पुत्र के बारे में कहा था। सूची में उसका नाम देखकर प्रधानाचार्य जी ने उनको बताया कि लड़का इंटेलीजेंट है और सिफारिश की जरूरत नहीं है। बाद में मिलने पर श्री पी.एन. सिंह ने यह बात मुझे बतायी, तो मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। मैंने उनको हार्दिक धन्यवाद दिया। इससे साथ ही उस प्रभु का भी धन्यवाद किया, जिसने मुझे ऐसा प्रतिभाशाली पुत्र प्रदान किया है।

रक्तदान

दीपांक के बी.एन.एस.डी. शिक्षा निकेतन में प्रवेश के बाद भी श्री महेश पांडेय से हमारा सम्पर्क बना रहा। वे उन्नाव के रहने वाले हैं। कई बार उन्होंने हमसे उनके निवास पर पधारने का अनुरोध किया, परन्तु हमें मौका ही नहीं मिला। एक बार उनका एक किशोर पुत्र पेट की किसी बीमारी से ग्रस्त हो गया। उसका आॅपरेशन होना था और दो यूनिट खून की भी आवश्यकता थी। उन्होंने हमारी श्रीमती जी से कहा कि एक यूनिट खून तो उसकी भाभी दे देगी, दूसरा यूनिट हमारी श्रीमती जी दे दें, तो समस्या हल हो जाएगी। श्रीमती जी तैयार हो गयीं और निर्धारित दिन मैं उनको साथ लेकर खून दिलवाने गया। जब हम खून देने के लिए मेडीकल कालेज में गये, तो वहाँ के डाक्टर श्रीमती जी का खून लेने को तो तैयार हो गये, परन्तु उस लड़के की भाभी का खून लेने को तैयार नहीं हुए, क्योंकि उनकी दृष्टि में वे बहुत कमजोर थीं और खून निकालने पर कमजोरी और भी बढ़ सकती थी। तब मैंने कहा कि मैं अपना खून देने को तैयार हूँ। डाक्टर ने मेरी जाँच की और खून लेने को तैयार हो गये। इस प्रकार मैंने और श्रीमती वीनू दोनों ने उस लड़के के लिए अपना खून दिया।

खून देने के बाद जब हम उठे तो मैं तो पूरी तरह सामान्य और प्रसन्न था। लेकिन श्रीमती जी को कमजोरी लग रही थी। मैं उनको सहारा देकर ला रहा था, तो कमजोरी स्पष्ट हो गयी। अब मैं घबराया कि एक बोतल खून निकालने के बदले कहीं इनको दो बोतल खून चढ़ाना न पड़े। अगर ऐसा होता, तो मैं कैसे इंतजाम करता? परन्तु सौभाग्य से इसकी नौबत नहीं आयी। हमने बाहर जाकर एक-एक गिलास मुसम्मी का जूस पिया और फिर रिक्शे में बैठकर घर आ गये।

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

9 thoughts on “आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 15)

  • महातम मिश्र

    मनीषा का विवाह, रक्तदान, दीपांक का एडमिशन और मकान मालिक के पुत्र की समस्या, हर घर की समस्या है जिसको आप ने निर्विवाक ढंग से हुबहू चित्रित किया है | कहीं फर्ज कही कर्ज, कहीं मन में अंदेशा, कही सामाजिक परिवेष में हिम्मत और दिलाशा | यही कशमकश ही तो नैतिकता को बढ़ावा देता है मान्यवर विजय कुमार सिंघल जी, और फिर जो खुशी मिलती है उसका जिवंत नमूना आप ने प्रस्तुत किया सादर धन्यवाद , बहुत खूब ……..

    • विजय कुमार सिंघल

      बहुत बहुत धन्यवाद बंधु। आपने सत्य कहा है।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई ,आज की किश्त बहुत अच्छी लगी ,कारण आप के बेटे का इतना योग्य होना है ,कोई भी माँ बाप अपने बेटे पर फखर करेगा ही . इस में एक बात और भी है कि जब आप इतने गुण रखते हैं तो बच्चे तो गुणी होंगे ही ,पंजाबी में कहते हैं ना ,बाप पर बेटा नसल पर घोडा ,बहुता नहीं तो थोडा थोडा . आप ने रक्तदान करके साबत कर दिया कि आप दूसरों के लिए कितनी सहानभूति रखते हैं . श्री ऐन के सिंह और उन के पुत्र की कथा लिखी , इस में एक तो वकालत की असफलता और दुसरे नशे लेना ही समझ आता है और आप की सहाएता से परिवार सामान्य हो गिया ,इस का सेहरा आप को ही जाता है .

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम भाईसाहब! यह सब प्रभु की कृपा और गुरुजनों का आशीर्वाद है।

  • विजय कुमार सिंघल

    प्रणाम, मान्यवर ! आभार ! योग्य पुत्र से प्रत्येक पिता को प्रसन्नता होती है। आपका पुत्र इस समय चेन्नई में एक बड़ी कम्पनी में सॉफ़्टवेयर इंजीनियर है। आज ही उसका प्रोमोशन होने का समाचार आया है। यह प्रभु की कृपा और आप जैसे गुरुजनों के आशीर्वाद का फल है।

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते एवं धन्यवाद श्री विजय जी। आज की किश्त में वर्णित सभी विषय सामाजिक ज्ञान के अंतर्गत हैं जिसमे आपकी भूमिका बहुत सराहनीय रही। पुत्र दीपांक की योग्यता जानकार प्रसन्नता हुई। आपका रक्तदान करना सराहनीय है। मुझे भी एक बार रक्तदान करने का अवसर मिला है। धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम, मान्यवर ! आभार ! योग्य पुत्र से प्रत्येक पिता को प्रसन्नता होती है। आपका पुत्र इस समय चेन्नई में एक बड़ी कम्पनी में सॉफ़्टवेयर इंजीनियर है। आज ही उसका प्रोमोशन होने का समाचार आया है। यह प्रभु की कृपा और आप जैसे गुरुजनों के आशीर्वाद का फल है।

      • Man Mohan Kumar Arya

        प्रतिक्रिया देख कर और दीपांक जी के प्रमोशन का समाचार सुनकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। उनको एवं समस्त परिवार को शुभकामनायें एवं हार्दिक बधाई। ईश्वर करे उसके सभी स्वप्न सफल व पूरे हों। ईश्वर उसे अच्छा स्वास्थ्य, मेधाबुद्धि एवं दीर्घायु प्रदान करें।

        • विजय कुमार सिंघल

          आपका आशीर्वाद हमारा सौभाग्य है।

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