मुक्तक= राज मुक्तक सुधा =2
[1]
महक फूलो से उठती है पिरोए ख्वाब बैठे हैं ,
अजब की आरजू उनकी सजोए ख्वाब बैठे हैं/
गजब की दास्ताँ उनकी परिंदे हैं नही नभ मे,
ज़मीं पे डाल के दाना बिछाए ख्वाब बैठे हैं/
[2]
गिद्ध गायब हो रहे देखकर पर्यावरण,
भ्रष्टाचारी बढ़ रहे देखकर वातावरण /
मंजिले उनकी अलग हैंपर निशाने एक हैं,
नित बदलते भाव कवि के देखकर शब्दावरण/
राजकिशोर मिश्र राज
jai………….ho………….
हौसला अफजाई के लिए ह्रदयतल से आभार
मुक्तक अच्छे हैं.
आदरणीय हार्दिक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदयतल से आभार