अठन्नी
चलो आज फिर से निकलें
बचपन की गलियों में
हाथ में ले अठन्नी खुशियों की,
जिसमे मिलते थे
दस टॉफी संतरे वाली,
चुस्की मलाई वाली
कुल्फी बड़ी वाली,
राम लड्डू खस्ता वाले
बूढी के बाल गुलाबी से,
कैंडी झंडे वाली
पेंसिल रबर फूलों वाली,
अम्बरक खट्टे वाले
छल्ली उबली वाली,
इमली लाल वाली
जिसे खाके दुनिया को जीभ दिखाते थे,
तब अठन्नी में भी अमीर थे
अब पैसे बैंक में बहुत है
पर दिल से गरीब हो गए,
प्लास्टिक के कार्ड में सिमट गयी दुनिया
रिश्ते और दोस्त बहुत दूर हो गए,
दुनिया अठन्नी वाली सुन्दर थी
कोई चिंन्ता नहीं थी,
मस्ती खूब छनती थी
दोस्तों के ठहाके थे,
शाम तक खेलते थे
छत पर जा सो जाते थे,
चलो निकल चलें फिर
मस्ती की दुनिया में
हाथ में ले अठन्नी खुशियों की।
_____ प्रीति दक्ष
हम ने तो सारा बचपन ही इन पैसों में गुज़ारा . १९५८ ५९ में नए पैसे आ गए फिर शाएद दो साल बाद किलो ग्राम आ गए और कुछ और बदला तो परदेसी हो गए.
shukriya gurmel singh ji.. 🙂
बहुत बढियां रचना महोदया प्रीती दक्ष जी, बचपन की दुकान याद आ गयी और खाली जेब में अठन्नी चवन्नी का वजन इतना अमीर लगा कि आज कागज़ का पुलिंदा और पासबुक में लिखी कई अंकों की रकम आज सुख शकुन से कोसों दूर दिख रही है ……..आभार……
shukriya mahatam mishra ji.. wakai jo jaddodahad maa se athanni ke liye karni padti thi aur phir agar kismat se ek rupya mil jata tha toh sham shaheliyon ke saath party hoti thi..
अच्छी कविता. बचपन में हमने भी अठन्नी खूब चलायी है.
🙂 vijay ji .. dhanywaad..
सुन्दर प्रशंसनीय कविता। अपने बचपन की याद दिलाकर तब अठन्नी से जो आनंद लूटते थे उन स्मृतियों को आँखों के सामने उपस्थित कर दिया। हार्दिक धन्यवाद।
shukriya man mohan ji .. bade maze kiye hain bachpan me athanni me ..
Hardic Dhanyawad Bahin ji.