वो तेरी यादें….
ये गुलाब के पंखुड़ियों पर बारिश की बूँदे
यूँ कुछ अक्श तेरे चेहरे का उभर आता है
जो बसाई है बरसो से ख्वाबो में तेरी तस्वीर
ये गुल उस तस्वीर की ताबीर नजर आता है
खिला है यूँ ये तेरी खनकती हँसी की तरह
महक रहा है मेरा मन भी सोंधी जमीं तरह
पंखुड़ियां हैं इसकी या सुर्ख नम लब तेरे
मचल रहा है मन मेरा किसी भँवरे की तरह
सोचता हूँ तोड़ इसे अपने सीने से लगा लूँ
तेरी यादो से वीरां दिल को फिर से बसा लूँ
पर ख़ूब जानता हूँ गमें जुदाई ऐ मेरे हमदम
जुदा इसको डाली से करने की ख़ता कैसे कर लूँ
-केशव
बहुत सुन्दर कविता !
वाह मान्यवर केशव जी, खता कैसे कर लूँ, क्या बात है……..