गीतिका/ग़ज़ल

दाँव लगाना ऐसा भी क्या/गज़ल

दाँव लगाना, ऐसा भी क्या!

खुद बिक जाना, ऐसा भी क्या!

 

दुआ बुजुर्गों की धकियाकर

देव मनाना, ऐसा भी क्या

 

जब-जब मुद्दे मूँछ मरोड़ें

सिर खुजलाना ऐसा भी क्या!

 

दाग दबाकर, अच्छे दिन की

मुहर लगाना, ऐसा भी क्या!

 

रचना फ्री, सहयोग राशि भी?

दे छपवाना, ऐसा भी क्या!

 

परिणय के बिन, होता ‘लिव-इन’

नया ज़माना, ऐसा भी क्या!

 

टूटे चाहे साँस, न छूटे

मय-मयखाना, ऐसा भी क्या!

 

घर-नारी का नूर बुझाकर

पर की रिझाना, ऐसा भी क्या!

 

प्रश्न ‘कल्पना’ हल चाहें तो

आँख चुराना, ऐसा भी क्या!

 

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]

5 thoughts on “दाँव लगाना ऐसा भी क्या/गज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    रमानी जी , आप की ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी, काश मैं अपने किबोर्ड से इसे गा सकता लेकिन आवाज़ की मजबूरी !! फिर भी दिल ही दिल में मैंने इसे गा लिया , बहुत खूब .

    • कल्पना रामानी

      आ॰ गुरमेल सिंह जी प्रोत्साहित करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद

  • महातम मिश्र

    क्या बात है सम्माननिया रामानी जी, हककित को सरलता से उतार दिया आप ने रचना में महोदया , परिणय के बिन होता लिव इन, नया जमाना ऐसा भी क्या…..बहुत खूब बहुत खूब

    • कल्पना रामानी

      सराहना के लिए बहुत धन्यवाद आ॰ मिश्र जी

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