दाँव लगाना ऐसा भी क्या/गज़ल
दाँव लगाना, ऐसा भी क्या!
खुद बिक जाना, ऐसा भी क्या!
दुआ बुजुर्गों की धकियाकर
देव मनाना, ऐसा भी क्या
जब-जब मुद्दे मूँछ मरोड़ें
सिर खुजलाना ऐसा भी क्या!
दाग दबाकर, अच्छे दिन की
मुहर लगाना, ऐसा भी क्या!
रचना फ्री, सहयोग राशि भी?
दे छपवाना, ऐसा भी क्या!
परिणय के बिन, होता ‘लिव-इन’
नया ज़माना, ऐसा भी क्या!
टूटे चाहे साँस, न छूटे
मय-मयखाना, ऐसा भी क्या!
घर-नारी का नूर बुझाकर
पर की रिझाना, ऐसा भी क्या!
प्रश्न ‘कल्पना’ हल चाहें तो
आँख चुराना, ऐसा भी क्या!
-कल्पना रामानी
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !
रमानी जी , आप की ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी, काश मैं अपने किबोर्ड से इसे गा सकता लेकिन आवाज़ की मजबूरी !! फिर भी दिल ही दिल में मैंने इसे गा लिया , बहुत खूब .
आ॰ गुरमेल सिंह जी प्रोत्साहित करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद
क्या बात है सम्माननिया रामानी जी, हककित को सरलता से उतार दिया आप ने रचना में महोदया , परिणय के बिन होता लिव इन, नया जमाना ऐसा भी क्या…..बहुत खूब बहुत खूब
सराहना के लिए बहुत धन्यवाद आ॰ मिश्र जी