मुक्तक/दोहा

दोहे : रूप तुम्हारा देखकर…

rup tumharaअलियों – कलियों में हुई , कुछ ऐसी तकरार ।
बूँद – बूँद में घुल रही ,मधुरिम प्रेम फुहार ।।

प्रीत-पपीहा गा रहा , मीठे-मीठे राग ।
सावन के झूले पड़े ,सुलगी विरही आग ।।

नन्हा पादप कह रहा , सुन रे पेड़ चिनार ।
बरस जाय मेघा अगर , दे दो इक दीनार ।।

गोरी तेरे प्यार में , बिसर गया संसार ।
दर-दर ठोकर खा रहा, मिला न तेरा प्यार ।।

रूप तुम्हारा देखकर, मन मेरा ललचाय ।
प्रेम नगर में खलबली, तन-मन भीगा जाय ।।

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

2 thoughts on “दोहे : रूप तुम्हारा देखकर…

  • गुंजन अग्रवाल

    aabhar bhaiya

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छे दोहे !

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