ग़ज़ल
ख़ुशी की बात होठों पर ग़मों की रात होठों पर ,
चले आओ कि होने दो सनम बरसात होठों पर |
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बड़ा जालिम जमाना है फँसा देगा सवालों में ,
मैं आने दे नहीं सकता तुम्हारी बात होठों पर |
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नज़र की बात नैनों से फिसल कर दिल में आ धमकी ,
हुई जो बात नैनों से बनी सौगात होठों पर |
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जुबां को लफ्ज देते हैं ग़ज़ल को भी नजाकत दी ,
अदम या जानवर हो तुम तुम्हारी जात होठों पर |
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तेरा आलोक आशिक है ग़ज़ल से इश्क फरमाए ,
कलम की नोक पर या फिर मेरी औकात होठों पर |
— अनन्त आलोक
समांत पदांत का बढ़िया निर्वहन
रदीफ का निबाह समुचित नहीं है।