दोहा
दोहा
पहले -तीसरे चरण में १३ मात्राएँ ,[6+4+1+2,/,3+3+4+1+2]
दूसरे–चौथे चरण में ११ मात्राएँ[6+4+1//3+3+2+2+1]
फूल बिना महिमा घटी,
चंदन कहत, जलजात।
आकुल मन रजनी चली ,
रवि शशि बिनु दिन-रात।। [1]
मायामय जग को कहे,
रवि सम्मुख अँधियार।
कामी कंठ हरिगुन कहे,
समझ समय सुविचार।। [२]
मलयागिरि महिमा कहे ,
राज सकल गुण खानि।
बहत पवन शीतल लगे
मदनामृत सम जानि।। [3]
लगे फूल गूलर सदा ,
देख मिलत नहि कोय।
सहज भाव से मयकदा
जात दिखे नहि कोय।। [4]
राजकिशोर मिश्र ”राज”
अच्छे दोहे, लेकिन पहले दोहे के दूसरे चरण और दूसरे दोहे के तीसरे चरण में एक एक मात्रा अधिक है।
आदरणीय सादर नमन , हौसला अफजाई के लिए आभार
मात्रा भार ====
फूल बिना महिमा घटी,
२१ १२ ११२ १२
चंदन कहत, जलजात।
१११ १११ ११२१
आकुल मन रजनी चली ,
२११ ११ ११२ १२
रवि शशि बिनु दिन-रात
११ ११ ११ ११ २१
मायामय जग को कहे,
२२११ ११ २ १२
रवि सम्मुख अँधियार।
११ ११११ ११२१
कामी कंठ हरिगुन कहे,
२२ ११ ११११ १२
समझ समय सुविचार
११११ १११ ११२१
चं की मात्रा २ है, एक नहीं।
इसी तरह कं की मात्रा २ होती है।
विसर्ग एवम्अनुस्वार से युक्त वर्ण भी “दीर्घ”होता जाता है
सुन्दर दोहे श्रीमान जी!!
आदरणीय रमेश कुमार सिंह जी , हौसला अफजाई के लिए आभार