कविता

अनकही सच्चाई

हर तरफ सियासत ही सियासत दिखी |
क्यूं चाहकर भी सच्चाई की कीमत पड़ गई फीकी |
हो गए शामिल खुद भी कुछ बातों में अनजाने से |
क्यूं चाहकर भी ना कोई रिहाई इधर दिखी |
खाव्व तो सबके होते हैं सबके सुनहरे से |
क्यूं खाव्वों की भरपाई इतनी मंहगी दिखी |
असलियत का मौल आंका जाता बहुत कम अब तो |
क्यूं मुनाफागिरी और बनावट को इतनी अहमीयत मिली |||
कामनी गुप्ता ***

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |