गीतिका
चंद्रमा की छवि मनोहर मधुर रस टपका गई ।
चाँदनी की धवल चादर प्रेम से सहला गई ।
चन्द्र किरणों ने अनोखा सेतु जब निर्मित किया।
नृत्य करती अप्सरायें भी धरा पर आगईं ।
प्रकृति ने सुर ताल छेड़े नाद स्वर झंकृत हुआ ।
जलधि की लहरें मचल कर व्योम से टकरा गई ।
प्रेम वश नक्षत्र सारे मुदित हो हँसने लगे ।
नवल कोमल रश्मियाँ भी अवनि को नहला गई ।
देख अद्भुत द्रश्य नभ का चकित सारा जग हुआ ।
चन्द्र की ये छवि मनोहर अमिय रस बरसा गईं ।
लता यादव
बहुत सुन्दर गीतिका !