सामाजिक

हिज़ाब को लेकर व्यर्थ माथापच्ची

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की ओर से शनिवार को आयोजित होने वाली ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) के लिए तय ड्रेस कोड में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद अभ्यर्थी कक्षा में पूरी आस्तीन की कमीज, हिजाब या बुर्का पहनकर नहीं जा सकेंगे। याचिका में दलील दी गई थी कि सीबीएसई द्वारा तय इस ड्रेस कोड से उनकी आस्था आहत होती है। कोर्ट ने हालांकि उनकी यह दलील खारिज कर दी।hh
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, यदि आप किसी परीक्षा में बिना हिजाब के बैठ जाएंगे, तो आपकी आस्था समाप्त नहीं हो जाएगी। याचिका को ‘अहंकार’ करार देते हुए कोर्ट ने कहा परीक्षा समाप्त होने के बाद अभ्यर्थी हिजाब पहन सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि आस्था एक विशेष प्रकार के कपड़े पहनने से कहीं अलग है।
इससे पहले भी विद्यालयों में हिज़ाब पहनने पर जब भी कोई विद्यालय रोक लगाता है तो मीडिया अपना रुदाली गान आरम्भ कर देता हैं। यह सारी माथा पच्ची न होती अगर लोग धर्म की मूलभूत परिभाषा से परिचित होते। धर्म में वाह्य (बाहर) के चिन्हों का कोई स्थान नहीं हैं, क्यूंकि धर्म लिंगात्मक नहीं हैं -न लिंगम धर्मं कारणं अर्थात लिंग (बाहरी चिन्ह) धर्म का कारण नहीं हैं।
धर्म आचरण प्रधान मार्ग है। धर्म में कर्म सर्वोपरि है। धर्म मनुष्य के स्वाभाव के अनुकूल है। धर्म सर्वकालिक (सभी काल में मानने योग्य), सार्वजानिक (सभी के लिए उपयोगी), सर्वग्राह्य (सभी को ग्रहण करने योग्य) और सार्वभौमिक (सभी स्थानों पर मानने योग्य) हैं। धर्म सदाचार रूप हैं अत: धर्मात्मा होने के लिये सदाचारी होना अनिवार्य है। धर्म ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है। धर्म मनुष्य को ईश्वर से सीधा सम्बन्ध जोड़ता है। धर्म मनुष्य को पुरुषार्थी बनाता है। धर्म दूसरों के हितों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति तक देना सिखाता है। धर्म मनुष्य को सभी प्राणी मात्र से प्रेम करना सिखाता है। धर्म मनुष्य जाति को मनुष्यत्व के नाते से एक प्रकार के सार्वजानिक आचारों और विचारों द्वारा एक केंद्र पर केन्द्रित करके भेदभाव और विरोध को मिटाता हैं तथा एकता का पाठ पढ़ाता है। धर्म एक मात्र ईश्वर की पूजा बतलाता है।
बिना मूंछ की दाढ़ी रखना, गोल टोपी पहनना, खुला पैजामा पहनना, हिज़ाब पहनना। यह सब धर्म नहीं अपितु बाहरी चिन्ह है। सोचिये एक व्यक्ति यह सभी धार्मिक चिन्ह धारण करता है मगर सदाचारी नहीं है और दूसरा व्यक्ति कोई चिन्ह धारण नहीं करता मगर सदाचारी है। दोनों में से कौन श्रेष्ठ है? सभी का उत्तर होगा पहले वाला दिखावा मात्र हैं जबकि दूसरे वाला सच्चे अर्थों में धार्मिक है। इसलिए धार्मिक बने दिखावटी नहीं।
— डॉ विवेक आर्य

4 thoughts on “हिज़ाब को लेकर व्यर्थ माथापच्ची

  • dollyaggarwal

    शानदार
    मन से धर्म और संस्कार होते है कपड़ो से नहीं |

  • मनमोहन कुमार आर्य

    लेख पढ़ा। लेखक को हार्दिक धन्यवाद।

    • dhanyavad ji

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. हिजाब की जिद करना मूर्खता है.

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