दोहे : करती खूब कलोल
सावन की बौछार में, भीगा है संसार
सखियाँ झूला झूलती,सुने मेघ मल्हार |
सजधज सखियाँ आ रही,कर सोलह शृंगार,
सावन की बौछार में, मने तीज त्यौहार |
मचकाती झूले सदा, करती खूब कलोल,
साजन आते याद है,सुन पक्षी के बोल |
बूंद बूंद बरसा रही, कुदरत करे कलोल,
सावन की बौछार में, भीगे खूब कपोल |
बदरा करते है कभी, सावन की बौछार,
चमकाती बिजुरी कभी, सखियों का शृंगार |
चंद्रमुखी मृगलोचनी, तेरा नहीं जवाब
सावन की बौछार में, देखे गाल गुलाब |
बहुत अच्छे दोहे !