भोजन और स्वास्थ्य
भोजन का हमारे स्वास्थ्य से सीधा सम्बन्ध है। हमारे अस्वस्थ रहने का सबसे बड़ा कारण गलत खानपान होता है। यदि हम अपने भोजन को स्वास्थ्य की दृष्टि से संतुलित करें और हानिकारक वस्तुओं का सेवन न करें, तो बीमार होने का कोई कारण नहीं रहेगा। हानिकारक वस्तुओं का सेवन करने पर ही रोग उत्पन्न होते हैं और उनका सेवन बन्द कर देने पर रोगों से छुटकारा पाना सरल हो जाता है।
कई प्राकृतिक तथा अन्य प्रकार के चिकित्सक तो केवल भोजन में सुधार और परिवर्तन करके ही सफलतापूर्वक अधिकांश रोगों की चिकित्सा करते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान में तो खान-पान का सबसे अधिक महत्व है। इसमें किसी दवा आदि का सेवन नहीं किया जाता, बल्कि भोजन को ही दवा के रूप में ग्रहण किया जाता है और इतने से ही व्यक्ति स्वास्थ्य के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है। आयुर्वेद में कहा गया है-
न चाहार समं किंचिद् भैषज्यमुपलभ्यते।
शक्यतेऽप्यन्न मात्रेण नरः कर्तुं निरामयः।।
अर्थात् ”आहार के समान दूसरी कोई औषधि नहीं है। केवल आहार से ही मनुष्य रोगमुक्त हो सकता है।“
आयुर्वेद में एक कहानी के रूप में स्वास्थ्य की कुंजी इस प्रकार दी गई है- ‘हित भुक्, ऋत भुक्, मित भुक्’ अर्थात् ”हितकारी भोजन करना, ऋतु अनुकूल तथा न्यायपूर्वक प्राप्त किया हुआ भोजन करना और अल्प मात्रा में भोजन करना“ यह स्वास्थ्य की कुंजी है। ये तीनों ही शर्तें बराबर महत्व की हैं। यदि हम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुओं का सेवन करेंगे, तो अवश्य ही हानि उठायेंगे। इसलिए भोजन में स्वास्थ्य के लिए हितकारी वस्तुएँ ही होनी चाहिए। अब यदि वस्तु हितकारी है, परन्तु ऋतु के अनुकूल नहीं है, तो भी हानिकारक होगी। इसलिए भोजन ऋतु के अनुकूल होना चाहिए। हितकारी और ऋतु अनुकूल भोजन भी यदि अधिक मात्रा में किया जाय, तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है, क्योंकि उसके पाचन में शरीर असमर्थ और कमजोर हो जाता है। इसलिए हितकारी और ऋतु अनुकूल वस्तुएँ भी अल्प मात्रा में ही सेवन करना चाहिए, तभी हम स्वस्थ रह सकेंगे।
यह भी महत्वपूर्ण है कि हम जो भी खायें, वह न्यायपूर्वक प्राप्त किया हुआ होना चाहिए। यदि कोई खाद्य पदार्थ हमने चोरी या बेईमानी से, किसी को सताकर, दुख पहुँचाकर, छीना-झपटी से या हिंसा करके प्राप्त किया हो, तो वह कितना भी स्वादिष्ट या पौष्टिक क्यों न हो, स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं हो सकता। देर-सवेर उसका दुष्प्रभाव हमारे तन-मन पर अवश्य पडे़गा। कहावत है कि ‘जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन’। जो लोग बिना परिश्रम किये और झूठ या बेईमानी या भ्रष्टाचार से धन एकत्र कर लेते हैं, वे चाहे कितना भी अच्छा भोजन कर लें, लेकिन सदा बीमार ही रहेंगे और अन्यायपूर्वक कमाया हुआ उनका धन बीमारियों के इलाज में ही व्यय होगा। बेईमानी के धन से सुख और स्वास्थ्य की आशा करना मूर्खता है।
— विजय कुमार सिंघल
लेख सबके लिए उपयोगी, लाभप्रद, ज्ञानवर्धक एवं अभिनन्दनीय है। आपका हार्दिक धन्यवाद है।
विजय भाई , लेख अच्छा लगा .आप का कहना सत्य है कि जो हम खाते हैं ,हम वोही हैं . इंसान की यह बदकिस्मती हैं कि इतनी अच्छी अच्छी ,साफ़ और शुद्ध खाने की वस्तुएं मिलने के बावजूद भी केवल जीभ के लिए बुरे और अन्हैल्थी खाने खाता है ,इस में मैं भी हूँ . बेछक मेरी खुराक बहुत अच्छी है ,फिर भी कभी कभी गलत भोजन खा ही लेता हूँ . यह मेरा अपना तजुर्बा है कि जब जब गलत खाना खाता हूँ तो फरक मेहसूस होता है . आज के ज़मानेमें तो अंतर्राष्ट्रीय खाने ही इतने मिलने लगे हैं जो हमारे अनकूल नहीं हैं . जब वीकैंड आता है तो स्पेशल खाना होता है जो भारी होता है ,इस लिए मैं तो हर सोमवार को ब्रेकफास्ट मिस कर देता हूँ और दुपहर को भी सिर्फ सलाद ही खाता हूँ और शाम को बौएल वेजिटेबल लेता हूँ . इस से कुछ बैलेंस हो जाता है और हल्कापन महसूस होता है . यह बिलकुल सही है कि सादा भोजन ही अच्छा है .
सही कहा भाई साहब, आपने. सामाजिकता के कारण हमें भरी चीजें खानी पड़ती हैं. लेकिन एक या दो बार का भोजन छोड़कर हम इसको संतुलित कर सकते हैं. मैं भी ऐसा ही करता हूँ. अभी आगरा गया था तो मेरी सलहज और साली ने तरह तरह की चीजें बनाकर खिलायीं. पेट गड़बड़ हो गया, लेकिन फिर मैंने हलकी चीजें बनवाकर ठीक कर लिया. ऐसा ही सब कर सकते हैं.