मुक्तक/दोहा

बुलन्द अशआर

धूप का लश्कर बढ़ा जाता है
छाँव का मन्ज़र लुटा जाता है
रौशनी में कदर पैनापन
आँख में सुइयाँ चुभा जाता है

फूल-पत्तों पर लिखा कुदरत ने
वो करिश्मा कब पढ़ा जाता है
चहचहाते पंछियों के कलरव में
प्यार का मौसम खिला जाता है

पाठशाला बना यह जीवन आजकल
नित नया पाठ है, भूख और प्यास का
देश संकट में है मत ठिठोली करो
आज अवसर नहीं, हास-परिहास का

लहज़े में क्यों बेरुख़ी है
आपको भी कुछ कमी है
दर्द काग़ज़ में जो उतरा
तब ये जाना शा’इरी है

पढ़ लिया उनका भी चेहरा
बंद आँखों में नमी है
सच ज़रा छूके जो गुज़रा
दिल में अब तक सनसनी है

छूने को आसमान काफ़ी है
पर अभी कुछ उड़ान बाक़ी है
कैसे ईमां बचाएं हम अपना
सामने खुशबयान साक़ी है

ग़रीबों को फ़क़त, उपदेश की घुट्टी पिलाते हो
बड़े आराम से तुम, चैन की बंसी बजाते हो
व्यवस्था कष्टकारी क्यों न हो, किरदार ऐसा है
ये जनता जानती है सब, कहाँ तुम सर झुकाते हो

महावीर उत्तरांचली

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६