गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा एक पर्व ही नहीं जीवन का यथार्थ है इसे हृदय से मनाएँ
भले ही फिर मंदिर में दीपक न जलाएँ
सोचो अगर गुरु परंपरा न होती तो ज्ञानियों की नई पौध कौन उगाता ……. कौन हमको गढ़-गढ़ कर सुंदर बनाता। किसी ने सही कहा है कि हर मनुष्य की प्रथम पाठशाला हमारा घर होता है और पहली गुरु हमारी “माँ”। गुरु की भूमिका निभाना आसान काम नहीं होता उसमें खुशी कम बुराई ज्यादा झेलनी पड़ती है ,और मैं समझती हूँ बुराई का टोकरा सिर पर रखकर हमारा मार्ग दर्शन एक गुरु ही कर सकता है एक माँ ही कर सकती है।
तभी उनको धरती की उपाधि से नवाजा गया होगा ।हम इस गुरु पुर्णिमा पर महिला होने के नाते महिलाओं से ही नेवेदन कर रही हूँ कि वो अपनी संतति को समय दें उनका सही मार्ग दर्शन करें क्योंकि बच्चे आप का ही प्रारूप हैं । मेरा अपना मानना है कि चाहे हम बूढ़े क्यों न हो जाएँ ,अपने माँ-पिता की ही पहचान बने रहते है। लोग हमारे चेहरे में सदैव ही उनके दर्शन करते है ।
मैं सदैव अपने माता-पिता कि ऋणी हूँ !!!!!!!!
ज्ञान दिया गुरु ने दिया,घट में हुआ उजास
राह पकड़ जो चल पड़ा,मिलिया वास सुवास॥
कल्पना मिश्रा बाजपेई