सामाजिक

गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा एक पर्व ही नहीं जीवन का यथार्थ है इसे हृदय से मनाएँ
भले ही फिर मंदिर में दीपक न जलाएँ

सोचो अगर गुरु परंपरा न होती तो ज्ञानियों की नई पौध कौन उगाता …….  कौन हमको गढ़-गढ़ कर सुंदर बनाता। किसी ने सही कहा है कि हर मनुष्य की प्रथम पाठशाला हमारा घर होता है और पहली गुरु हमारी “माँ”। गुरु की भूमिका निभाना आसान काम नहीं होता उसमें खुशी कम बुराई ज्यादा झेलनी पड़ती है ,और मैं समझती हूँ बुराई का टोकरा सिर पर रखकर हमारा मार्ग दर्शन एक गुरु ही कर सकता है एक माँ ही कर सकती है।

तभी उनको धरती की उपाधि से नवाजा गया होगा ।हम इस गुरु पुर्णिमा पर महिला होने के नाते महिलाओं से ही नेवेदन कर रही हूँ कि वो अपनी संतति को समय दें उनका सही मार्ग दर्शन करें क्योंकि बच्चे आप का ही प्रारूप हैं । मेरा अपना मानना है कि चाहे हम बूढ़े क्यों न हो जाएँ ,अपने माँ-पिता की ही पहचान बने रहते है। लोग हमारे चेहरे में सदैव ही उनके दर्शन करते है ।
मैं सदैव अपने माता-पिता कि ऋणी हूँ !!!!!!!!

ज्ञान दिया गुरु ने दिया,घट में हुआ उजास
राह पकड़ जो चल पड़ा,मिलिया वास सुवास॥

कल्पना मिश्रा बाजपेई

कल्पना मनोरमा

जन्म तिथि 4/6/1972 जन्म स्थान – औरैया, इटावा माता का नाम- स्व- श्रीमती मनोरमा मिश्रा पिता का नाम- श्री प्रकाश नारायण मिश्रा शिक्षा - एम.ए (हिन्दी) बी.एड कर्म क्षेत्र - अध्यापिका प्रकाशित कृतियाँ – सारंस समय का साझा संकलन,जीवंत हस्ताक्षर साझा संकलन, कानपुर हिंदुस्तान,निर्झर टाइम्स अखबार में,इंडियन हेल्प लाइन पत्रिका में लेख,अभिलेख, सुबोध सृजन अंतरजाल पत्रिका में। हमारी रचनाएँ पढ़ सकते हो । लेखन - स्वतंत्र लेखन संप्रति - इंटर कॉलेज में अध्यापन कार्य । सम्मान - मुक्तक मंच द्वारा (सम्मान गौरव दो बार )भाषा सहोदरी द्वारा (सहोदरी साहित्य ज्ञान सम्मान) साहित्य सृजन - अनेक कवितायें तुकांत एवं अतुकांत,गजल गीत ,नवगीत ,लेख और आलेख,कहानी ,लघु कथा इत्यादि ।