क्या शिक्षित होने से अंधभक्ति से मुक्त हुआ जा सकता है ?
टीवी पर एक खबर दिखा रहे हैं कि जयपुर के कोर्ट में आज एक ऐसे केस पर सुनवाई हुई जिसमें एक बच्चे को एक धर्म गुरु से छुड़वा के उसके माँ बाप को सौंप दिया गया ।
गौरतलब है की केस करने वाले बच्चे के दादा दादी है , उनके अनुसार उनके बहू बेटे ने अपने 5 महीने के बच्चे को एक हफ्ते पहले एक गुरु को सौप दिया था। इस पर दादा-दादी को ऐतराज था कि इतने छोटे बच्चे को किसी सन्यासी को कैसे सौंपा जा सकता है ?
बहू-बेटे बहुत समझाने पर नहीं माने तो उन्होंने कोर्ट का सहारा लिया और बच्चे को गुरु से लेके वापस उसके माता पिता को सौप दिया ।
जब टीवी रिपोर्टर ने उस महिला से बात की जिसने गुरु को अपना बच्चा सौंप दिया था तो उसने बड़े रौबीले अंदाज में बताया कि वो और उसका पति पढ़े लिखे हैं। उसने डॉक्टरेट की हुई है और उसके पति एमबीए है और गुरु से भक्ति और समर्पण के कारण ही उन्होंने पूरे होशोहवास में बच्चे को गुरु को सौंपा था। उन्होंने बच्चे को वापस लेने में दिलचस्पी नहीं दिखाई ।बस कोर्ट के आदेश का पालन भर किया है।
अब सवाल की ऐसा ये धर्म गुरु लोग कौन सा सम्मोहन करते हैं कि अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग भी इनके झांसे में इस तरह आ जाते हैं कि अपने 5 महीने के बच्चे को भी उनको सौंप देते हैं ?
जब मैं ऐसी गांव देहात के या शहरी अनपढ़ लोगो के द्वारा तांत्रिको के जाल में फंस के बच्चे की बलि देने, या पूजा पाठ, भूत प्रेत बाधा मुक्ति के लिए तरह तरह के प्रपंच करने की घटनाओ को पढता हूँ तो मुझे यह समझ आता है की लोग अनपढ़ है इसलिए तांत्रिकों-गुरुओं आदि के चक्कर में आ जाते हैं ।
परन्तु जब इतने पढ़े लिखे लोगों को आसानी से मूर्ख बनते और अंधभक्ति की हद तक इन गुरुओं और बाबाओं के दरवाजे पर माथा टेकते हुए पाता हूँ तो समझ नहीं पाता कि क्या वाकई इंसान के इतने उच्च पढ़े लिखे होने से कोई लाभ है ? क्या वाकई शिक्षा मानव के मस्तिष्क को उन्नत बनाती है ?
निश्चय ही ऐसे पढ़े लिखे लोग जो बाबाओं और गुरुओं आदि के चक्कर में आते हैं उनके परवरिश का वातावरण उनकी शिक्षा पर हावी रहता है। इसलिए शिक्षित होते हुए भी वे मानसिक रूप से कमजोर होते हैं ।
– केशव ( संजय)