कविता

सुरों से है मेरा नाता

सुरों से है मेरा नाता, कोई मुझमें है गा जाता;
कभी मैं जान ना पाता, कोई पर उसे सुन जाता !
गुनगुना प्राय मैं जाता, ध्वनि उसकी सुना जाता;
देख जग जीव उसके मग, तरंगित सदा मैं रहता !
तरन्नुम तर्ज़ मैं पाता, बना कविता प्रचुर जाता;
कभी लिख उसे ना पाता, कभी लिख जग सुना जाता !
भाव हर कवित बन आता, नासिका सुर में गा जाता;
कण्ठ स्वर कोई दे जाता, प्रफुल्लित हृदय कर जाता !
ताजगी बदन को देता, तरंग हर पथिक को देता;
‘मधु’ मालंच जग रहता, झूल झोटे मगन रहता !
 गोपाल बघेल ‘मधु’
टोरोंटो, ओंटारियो, कनाडा