कविता

ज्ञान विज्ञान पर…

ज्ञान विज्ञान पर तु कितना भी गुमान कर ।
अपनी तरक्की पर तु कितना भी अभिमान कर ।
पर उसके सामने तेरा वजूद कुछ भी नही ।
सम्हल जा अभी भी वक्त है ,कुदरत के कानून का सम्मान कर ॥

अपनी ताकत पर इतना मत इतरा,उसके वजूद को यूं नजर अंदाज मत कर ।
बहुत सुरीला है, प्रकृति का राग बरबाद करके इसे बे राग मत कर ।
अपने दायरे मे रहकर, जो चाहे करता जा
औकात से बाहर होकर,यूं उन्माद मत कर ॥

दूर तक धूल मे मिले, अपने आलीशान निर्माण को देख ।
पल भर भी सम्हल ना सका, उसकी ताकत के प्रमाण को देख ।
अब भी होश मे आ, प्रकृति से खिलवाड से तौबा कर ।
खुदगर्जी की फितरत को छोड आने वाली नस्लो के जीवन प्राण को देख ॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.