कविता

श्याम मेरे

[1]

जल मेंआप , थल मेंआप =श्याम मेरे =तन मन मेंआप/
गीत मेंआप , प्रीति में आप = श्याम मेरे रग रग में आप/
गली-गली हर साज़ में आप = रूप रंग में  राधे- राधे ,
जीत नीति , संगीत बाँसुरिया = श्याम मेरे = सुर लय में आप/
राजकिशोर मिश्र ”राज”

[2]

पंच दुर्गुणों की होली जला के देखो ,
खुशियाँ बहार लाएँगी उनको लूटा के देखो
हर गली खुशहाल होगी न कहीं पर द्वेष होगा,
राम राज की कल्पना  खुद  में सज़ा के देखो
राजकिशोर मिश्र ”राज”

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

2 thoughts on “श्याम मेरे

  • विजय कुमार सिंघल

    आपकी कवितायें अच्छी हैं। लेकिन आप अपनी रचनाओं में हर जगह ‘में’ को ‘मे’ लिखते हैं जो बहुत खटकता है। मैं पहले भी कई बार कह चुका हूँ कि इसको ठीक लिखा कीजिए पर आपने ध्यान नहीं दिया। हमारे पास इतना समय नहीं है कि इनको सही कर सकें। अाशा है आगे आप ध्यान रखेंगे।

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय सादर नमन आपका सुझाव अनुकरणीय है ,,, जिन ग़लतियों को हम छोटा समझते हैं, वह मेरी सबसे बड़ी भूल साबित होती है /

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