श्याम मेरे
[1]
जल मेंआप , थल मेंआप =श्याम मेरे =तन मन मेंआप/
गीत मेंआप , प्रीति में आप = श्याम मेरे रग रग में आप/
गली-गली हर साज़ में आप = रूप रंग में राधे- राधे ,
जीत नीति , संगीत बाँसुरिया = श्याम मेरे = सुर लय में आप/
राजकिशोर मिश्र ”राज”
[2]
पंच दुर्गुणों की होली जला के देखो ,
खुशियाँ बहार लाएँगी उनको लूटा के देखो
हर गली खुशहाल होगी न कहीं पर द्वेष होगा,
राम राज की कल्पना खुद में सज़ा के देखो
राजकिशोर मिश्र ”राज”
आपकी कवितायें अच्छी हैं। लेकिन आप अपनी रचनाओं में हर जगह ‘में’ को ‘मे’ लिखते हैं जो बहुत खटकता है। मैं पहले भी कई बार कह चुका हूँ कि इसको ठीक लिखा कीजिए पर आपने ध्यान नहीं दिया। हमारे पास इतना समय नहीं है कि इनको सही कर सकें। अाशा है आगे आप ध्यान रखेंगे।
आदरणीय सादर नमन आपका सुझाव अनुकरणीय है ,,, जिन ग़लतियों को हम छोटा समझते हैं, वह मेरी सबसे बड़ी भूल साबित होती है /