कविता

जाने क्यूं……

जाने क्यूं
अब शर्म से, चेहरे गुलाब नही होते।
जाने क्यूं
अब मस्त मौला मिजाज नही होते।
पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।
जाने क्यूं
अब चेहरे, खुली किताब नही होते।
सुना है
बिन कहे
दिल की बात समझ लेते थे।
गले लगते ही
दोस्त हालात समझ लेते थे।
जब ना फेस बुक थी
ना व्हाटस एप था
ना मोबाइल था
एक चिट्टी से ही
दिलों के जज्बात समझ लेते थे।
सोचता हूं
हम कहां से कहां आ गये।
प्रेक्टीकली सोचते सोचते
भावनाओं को खा गये।
अब भाई भाई से
समस्या का समाधान कहां पूछता है
अब बेटा बाप से
उलझनों का निदान कहां पूछता है
बेटी नही पूछती
मां से गृहस्थी के सलीके।
अब कौन गुरु के चरणों में बैठकर
ज्ञान की परिभाषा सीखे।
परियों की बातें
अब किसे भाती है
अपनो की याद
अब किसे रुलाती है
अब कौन
गरीब को सखा बताता है
अब कहां
कृण्ण सुदामा को गले लगाता है
जिन्दगी मे
हम प्रेक्टिकल हो गये है
रोबोट बन गये है सब
इंसान जाने कहां खो गये है
इंसान जाने कहां खो गये है
इंसान जाने कहां खो गये है…..
सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.