कविता

सरिता की धारा सम जीवन

नित्य करेला खाकर गुरु जी, मीठे बोल सुनाते हैं,
नीम पात को प्रात चबा बम, भोले का गुण गाते हैं.
उपरी छिलका फल अनार का, तीता जितना होता है
उस छिलके के अंदर दाने, मीठे रस को पाते हैं.
कोकिल गाती मुक्त कंठ से, आम्र मंजरी के ऊपर
काले काले भंवरे सारे, मस्ती में गुंजाते हैं.
कांटो मध्यहि कलियाँ पल कर, खिलती है मुस्काती है
पुष्प सुहाने मादक बनकर, भौंरों को ललचाते हैं.
भीषण गर्मी के आतप से, पानी कैसे भाप बने
भाप बने बादल जैसे ही, शीतल जल को लाते हैं.
यह संसार गजब है बंधू, जन्म मृत्यु से बंधा हुआ
जो आकर जीवन जीते हैं, वही मृत्यु को पाते हैं.
सुख दुःख का यह मधुर मिलन है, दो पाटों के बीच तरल
सरिता की धारा सम जीवन, भवसागर में आते हैं.

– जवाहर लाल सिंह

2 thoughts on “सरिता की धारा सम जीवन

  • जवाहर लाल सिंह

    हार्दिक आभार आदरणीय राज किशोर मिश्र जी!

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    अतीव सुंदर सृजन’आदरणीय

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