कविता

कहाँ है मेरे  पद चिन्ह !

अनुकरण करते -करते ,

पद चिन्हों पर

चलते -चलते

भूल ही गए अपने क़दमों की आहट।

मालूम नहीं था

एक दिन गुम हो जाना है

इस धरा में मिल  जाना है

बन कर मिट्टी।

या

विलीन हो जाना है

वायु में

बिना महक ,बिना धुँआ।

बस यूँ ही चलते ही गए

अनुगामी बन

ढूंढी ही नहीं कभी

अपनी राह।

पैरों की रेखाएं ,

पद्म चिन्ह

सब  गुम हो गए ,

चलते -चलते

क़दमों पर कदम रखते।

आज मुड़ कर देखा

कहाँ है मेरे

पद चिन्ह !

उन्हें तो निगल गयी है

तपती धूप।

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।