ब्लॉग/परिचर्चा

दलित शुद्रो से कब मांफी मांगेगा देश?

 

हाल ही में ऑक्सफोर्ड युनिवेर्सिटी में  शशि थरूर का वह ऐतिहासिक भाषण जिसमें उन्होंने अंग्रेजो से भारत में रहे अपने 200 वर्षो के औपनिवेशिक काल में  किये गए अत्याचारो के लिए हर्जाने , प्रायश्चित और मांफी मांगने की बात कही । शशि थरूर के इस भाषण की उच्च भारतीय वर्ग ने जम के सरहना की और यंहा तक कह दिया की शशि थरूर का यह भाषण नेहरू और मार्टिन लूथर के भावनात्मक भाषणों के समकक्ष है । शशि थरूर के विरोधी भी उनके इस भाषण से कायल हो गए , कई दिनों तक सोसल मिडीया में उनकी प्रसंशा  होती रही है ।

 

थरूर साहब , पर एक कहावत है की सुधार शुरआत स्वयं से करनी चाहिए ,यदि अंग्रेजो के  अपने दो सौ सालो के शासन में भारतीयो पर अत्याचार-अन्याय और गलतियों के लिए सार्वजानिक रूप से माफ़ी माँगनी चाहिए और प्रायश्चित करना चाहिए  तो दो हज़ार सालों से जो निचली जातियो और दलितों पर हिन्दू धर्म के  ऊँची जातियों के लोगो ने अत्याचार, अन्याय, क्रूरता , अमानवीय व्यवहार  किया उसके बारे में क्या कहा जाए?

 

क्या सवर्णों द्वारा जानबूझ के और सोची समझी रणनीति के तहत और व्यवस्थित तरीके से उन्हें सामजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शारीरिक तथा मानसिक रूप से जो क्षति और आघात

हजारो सालो से पहुँचाया गया और पहुँचाया जा रहा है उसके लिए सवर्णों को नीची जातियों और दलितों से मांफी नहीं मांगनी चाहिए ? क्या हजारो सालो किये गए अपने अत्याचार और अन्याय का प्रायश्चित नहीं करना चाहिए?

अंग्रेज भारत के नहीं थे वे केवल शासक बन के आये थे , भारतीय लोग अंग्रेजो के अपने समाज के अंग नहीं थे न हीं उनके धर्म के थे । श्वेत अमेरिकियो ने  अश्वेत लोगो के साथ अन्याय किया पर ज्यादातर अश्वेत अमेरिका के नहीं थे वे अफ्रीका मूल से आये थे ।

जबकि हिन्दू समाज की ऊँची जातियो ने अपने ही समाज के अंग , अपने ही देश के लोगो के साथ बिना किसी अपराध के उनके साथ दो हज़ार से अधिक सालो तक अमानवीय व्यवहार जारी रखा ।

इन वर्षो में ऊँची जातियों ने नीची जातियों और अछूतो को हमेशा के लिए औने दमन और घृणा का शिकार और गुलाम बनाने के लिए कई तरह के राजनैतिक , धार्मिक और सामजिक

हथकंडे अपनाये । ऊँची जातियों का कहना था की अछूतो और नीची जातियों को सम्पति, शिक्षा का कोई अधिकार नहीं , सिर्फ ऊँची जातियों की निष्काम सेवा ही उनका एक मात्र कार्य है और अछूतो – नीची जातियों के मुक्ति के सभी दरवाजे बंद कर दिए ।

 

अपने शासन के चरम दिनों में भी अंग्रेजो ने ऐसा आदेश नहीं दिया की अछूत जातियो के लोग जब सड़क पर चलें तो अपनी कमर पर घंटी , गले में हांड़ी और पीछे झाड़ू बाँध के चले ताकि गलती से भी ऊँची जातियों के लोगो का पैर उनके पैरों के निशान पर न पड़ जाए और वे अपवित्र न हो जाएँ ।अछूत लोग गाँवो से बहार मलिन बस्तियों में रहने के लिए अभिशप्त थे उन्हें न तो आम कुंओ से पानी लेने का अधिकार था , न ही वे ऊँची जाति के लोगो द्वारा बनाये गए मंदिर मठो आदि में ही प्रवेश ले सकते थे । इससे भी भयानक और बदतर नियम यह था की शोषण की इस व्यवस्था को वंशानुगत बना दिया गया यानि की अछूत और निचली जाति में जन्म लेने से पीढ़ी दर पीढ़ी ऊँची जातियो के बनाये अमानवीय व्यवस्था में जीना पड़ता ।

क्या कभी ऊँची जाति के लोग उस अहसास को समझ सकते हैं जो उनके बनाये नियमो के कारण अछूतो और नीची जातियो को अपमानजनक और अमानवीय मनोवैज्ञानिक हीन भावना में पीढ़ी दर पीढ़ी जीना पड़ा होगा ?

कोलम्बिया युनिवेर्सिटी से लौटने के बाद बाबा साहब के साथ जो ऊँची जाति के लोगो ने व्यवहार किया उसको सुन किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के रोंगटे खड़े हो सकते हैं ।

अछूतो के साथ ऊँची जातियो की क्रूरता और घृणा आज़ादी के बाद भी नहीं रुकी , बिहार में भूमिहीन अछूत मजदूरो की मजदूरी बढ़ाने जैसी छोटी सी मांग के कारण अछूतो की पूरी बस्तियां जला दी गईं , उनकी महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया उन्हें नग्न घुमाया गया । हरियाणा में अछूतो द्वारा ऊँची जातियो की बेगारी करने से मना कर देने के कारण अछूतो को जिंदा उन्ही के घरो में जला दिया गया । उत्तर प्रदेश में दिन दहाड़े दलित बच्चियो के साथ छेड़खानी और बलात्कार हुए और जबरन पूरी बस्ती खाली करवा ली गई ।

ये घटनाये वे हैं जो राष्ट्र पटल पर आईं वर्ना दलितों और नीची जातियो के साथ किया गया 90%  अपराध थाने तक नहीं पहुँच पाता है।

 

आज भी स्थिति में बहुत अधिक सुधार नहीं हुआ है , पूर्व गृह मंत्री पी.चिदंबरम ने एक बार संसद में यह बताया था की एक वर्ष में देश में दलितों के साथ 14 हजार शारीरिक उत्पीड़न के मामले दर्ज हुए हैं , चुकी 90% तक मामले दर्ज ही नहीं होते तो वास्तविक संख्या लाखो में हो सकती है ।

 

तो थरूर साहब, अछूतो और नीची जातियो के साथ पिछले दो हजारो से अधिक सालो के अन्याय और अत्याचारो के लिए किसे मांफी मंगनी चाहिए ?

जो अछूतो और निचली जातियो पर अमानवीय व्यवहार हो रहा है उसका प्रायश्चित किसे करना चाहिए?

क्या आप भारत में ऐसा कोई ऐतिहासिक भाषण देंगे जिसमे भारतीय संसद को अछूतो और निचली जातियो पर हुए और हो रहे अत्याचारो के लिए बिना शर्त मांफी मांगने का प्रस्ताव पारित हो और प्रायश्चित की बात की गई हो?

 

नोट- यह लेख मैंने सुरेन्द्र कुमार जी जो की पूर्व राजनयिक है उनके एक लेख के आधार पर लिखा है

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?