दूरदर्शन के कुछ कार्यक्रम कर रहे हैं गुमराह
प्रायः बच्चे अपने माता-पिता एवं घर के अन्य बड़े बुजुर्गों को ही अपना रोलमॉडल मानते हैं और उन्हीं का अनुकरण भी करते हैं इसलिए हमें ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए जो बच्चों के चरित्र निर्माण में गलत प्रभाव डालते हों..!
आजकल दूरदर्शन पर कुछ कुछ ऐसे बेतुके कार्यक्रम परोसे जा रहे हैं जिसका यथार्थ से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं होता है ! चूंकि बच्चों का मन कोमल होता है इसलिए वे उसे सच मानकर उन्हीं का अनुकरण करने लगते हैं..जिसका दुष्परिणाम कभी-कभी बहुत ही भयावह होता है..! जैसे सुपर मैन को छत पर से छलांग लगाते हुए देखकर उनके अन्दर भी सुपर मैन बनने की चाह उत्पन्न हो जाती है और कभी-कभी वैसा ही करने की कोशिश में अपनी जान भी गंवानी पड़ी है..! या कभी-कभी विज्ञापन में तेज बाइक चलाते देखकर वे भी वैसा ही करने लगते हैं जो कि बहुत ही खतरनाक है..!
इसके अतिरिक्त टेलीविजन सीरियल्स में रिश्तों को जिसप्रकार से खलनायक खलनाइका के रूप में रूपांतरित किया जाता है जिससे बच्चों का कोमल मन उसी रूप में रिश्तों को देखने लगता है और इस वजह से वो रिश्तों को यथोचित सम्मान नहीं दे पाता है जो हमारे भारतीय समाज एवं संस्कृति के लिए अशुभ संकेत है….!
इतना ही नहीं इतिहास को भी तोड़ मरोड़कर चटपटा बनाकर दिखाया जा रहा है… जहाँ भूत-प्रेत और टोना टोटका को बढ़ावा दिया जा रहा है…! जिसपर बच्चे विश्वास कर लेते हैं और उन्हें अपने इतिहास की भी गलत जानकारी मिलती है……. क्योंकि मस्तिष्कस पटल पर सचित्र फिल्मों का असर पाठ्यक्रमों से अधिक रहता है….!
अन्त में बात आती है अंगप्रदर्शन और सेक्स की इसकी तो अति हो गई है… जब फिल्म के नायक नाइकाएं अंगप्रदर्शन वाले कपड़े पहनते हैं चूंकि आज के बच्चे या कुछ अल्पबुद्धि युवा वर्ग उन्हें ही अपना आदर्श मानकर उन्हीं का अनुकरण करने हैं…! जिसका दुष्परिणाम युवक और युवतियों को भुगतना पड़ता है..!
हिंसक प्रवृत्तियों को भी टेलीविजन के कुछ कार्यक्रम बढ़ावा दे रहे हैं जिनके दुष्परिणाम स्वरुप बच्चे कभी-कभी अपने भाई बहनों तथा मित्रों पर प्रयोग करते हैं जो कि बहुत ही खतरनाक है….!
फिर भी टेलीविजन के अच्छे पहलू को नकारा नहीं जा सकता..जहाँ बहुत से प्रोग्राम बहुत ही ज्ञानवर्धक होते हैं….! इसलिए हमें बच्चों को अनुशासित रखने के लिए पहले स्वयं को अनुशासित रखना होगा..!
परिवार में आपसी सहमति से सबके लिए अपने अपने कार्यक्रमों को देखने के लिए समय निर्धारित करना होगा…! तथा हिंसक और उत्तेजक कार्यक्रमों पर घर में प्रतिबंध लगाना होगा….!
बच्चों का कोमल मन कच्ची मिट्टी की तरह होता है उन्हें जैसे सांचे में ढाला जाए ढल जाते हैं इसलिए उनके साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखकर उन्हें तर्क पूर्ण ढंग से कार्यक्रमों के अच्छे और बुरे पहलुओं को समझाना चाहिए ..!
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©कॉपीराइट किरण सिंह