धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

हमारा उपास्य परमेश्वर

ओ३म्

प्रत्येक व्यक्ति के मन में इस सृष्टि को देखकर इसके बनाने वाले कर्त्ता का ध्यान आता है परन्तु वह ज्ञान के अभाव में निर्णय नहीं कर पाता कि इसका बनाने वाला कौन है? सृष्टि को देखकर बुद्धि कहती है कि वह एक महान, चेतन, सर्वव्यापक, निराकार, सूक्ष्मातिसूक्ष्म व अदृश्य, सर्वज्ञ, अनादि, नित्य, अमर व आनन्द से पूर्ण सत्ता है। इससे विपरीत अन्य किसी सत्ता से यह सृष्टि बन ही नहीं सकती। वेद, दर्शन तथा उपनिषदों में भी ईश्वर के ऐसे ही स्वरूप का वर्णन है।

वेदों के अप्रचार व भिन्न-भिन्न उपासना पद्धतियों से ईश्वर के स्वरूप के सम्बन्ध में भ्रम फैला हुआ है। प्रश्न उत्पन्न होता है कि ईश्वर ने यह विशाल सृष्टि क्यों व किसके लिये बनाई है? क्यों का सीधा उत्तर है कि उसने अपनी शक्ति व सामर्थ्य तथा जीवात्माओं के पाप-पुण्यों के सुख-दुःख रूपी फल प्रदान करने के लिए यह सृष्टि बनाई है। जिज्ञासा की जा सकती है कि यह जीवात्मा कौन व कहां से आये हैं? जीवात्मा अनादि, नित्य, अजन्मा, अमर, चेतन, ज्ञान व कर्म स्वभाववाली तथा जन्म व मरण में फंसी हुई एक सूक्ष्म सत्ता है। ईश्वर व जीवात्मा का सम्बन्ध पिता-पुत्र तथा व्यापक-व्याप्य का है।

संसार किस से उत्पन्न हुआ, इसका उत्तर है कि निमित्त कारण ईश्वर तथा उपादान कारण सत्व, रज व तम गुणों वाली सूक्ष्म प्रकृति से। यह प्रकृति इससे भी सूक्ष्म ईश्वर के पूर्ण नियंत्रण में है। सृष्टि कल्प के आरम्भ में ईश्वर ही इसे अपने ज्ञान व सामर्थ्य से स्थूल रूप देकर वर्तमान स्वरूप प्रदान करते हैं। सृष्टि बन जाने पर ईश्वर कल्प के आरम्भ में अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा नाम वाले चार ऋषियों को अन्तर्यामी स्वरूप से चार वेदों का अर्थ सहित ज्ञान देते हैं। वेद ज्ञान से युक्त होकर सभी मनुष्य जीवन के रहस्य व कर्म-फल सिद्धान्त को जान जाते हैं। जन्म-मरण को दुःखमय जानकर मनुष्य ईश्वराज्ञा के अनुसार ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव का ध्यान कर उसकी स्तुति, प्रार्थना व उपासना करते हैं जिसके सफल होने से मनुष्य जीवनमुक्त होकर मोक्ष के अधिकारी बन जाते हैं। मोक्ष की प्राप्ति ही जीवन का प्रयोजन एवं लक्ष्य है।

अतः ईश्वर के मुख्य नाम ओ३म् का जप व स्तुति-प्रार्थना-उपासना ही सब मनुष्यों का मुख्य कर्तव्य है।

-मन मोहन आर्य

 

6 thoughts on “हमारा उपास्य परमेश्वर

  • विभा रानी श्रीवास्तव


    सार्थक लेखन

    • मनमोहन कुमार आर्य

      नमस्ते बहिन जी। आपने लेख पढ़कर प्रतिक्रिया दी और उसे सार्थक बताया, इससे मेरा उत्साहवर्धन हुआ है। ह्रदय से आपका आभारी हूँ। हार्दिक धन्यवाद।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मनमोहन भाई , लेख अच्छा लगा .एक बात तो पक्की है कि कह तो सब लोग लेते हैं कि परमात्मा एक है ,उस का कोई रूप नहीं है ,वोह अपने आप पैदा हुआ है लेकिन संतुष्टि कम लोगों को ही होती है . जो धार्मिक फ़िल्में देखने से मन में एक मूर्त बैठी हुई है उस से भ्रम ऐसे पैदा हुए हैं कि बहुत कम लोगों को इस बात की समझ आती है . सची बात तो यह है ,कह तो मैं भी बहुत कुछ लेता हूँ लेकिन मुझे भी इस बारे में जानकारी नहीं है , इस लिए मैं भी यही कह देता हूँ कि भगवान् है जिस ने यह श्रृष्टि बनाई है लेकिन मुझे पता नहीं .इस सवाल को जैसे जैसे आगे जाएँ किसी की तसल्ली नहीं होती ,कोई महात्मा होगा जो इस को समझ सकता है वर्ना आम इंसान जितना मर्जी कहे समझना बहुत मुश्किल है .

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। स्वामी श्रद्धानन्द जी, तलवन, पंजाब युवावस्था में मुंशीराम कहलाते थे. वह नास्तिक हो गए थे। अंग्रेजी की बहुत पुस्तकें पढ़ते थे। बरेली में महर्षि दयानंद से ईश्वर के अस्तित्व पर पहले दिन फिर अगले दिन अनेकानेक प्रश्न पूंछे। स्वामी जी ने सबके उत्तर दिए। मुंशीराम जी निरुत्तर हो गए। स्वामी दयानंद जी से बोले आपने मुझे निरुत्तर तो कर दिया है परन्तु मेरे आत्मा को ईश्वर के अस्तित्व का अब भी विश्वास नहीं हुआ। इस पर स्वामी जी ने कहा की आपने प्रश्न पूंछे मैंने उत्तर दिए, यह तो हम दोनों की बौद्धिक क्षमता की बात थी। मैंने तुम्हे ईश्वर का विश्वास करने का दावा नहीं किया था? फिर बोले, मुंशीराम ! तुम्हे ईश्वर का विश्वास उस दिन होगा जिस दिन ईश्वर तुम्हे स्वंय अपने अस्तित्व का विश्वास कराएँगे। यह बात आगे के समय में सही साबित हुई। बाद में मुंशी राम जी को ईश्वर के अस्तित्वे में प्रबल विश्वास हो गया और वह मद्य व मांस का सेवन करने वाले संत व महात्मा बन गए। वह पहले व आखिरी गैर मुस्लिम थे जिन्होंने जामा मस्जिद, दिल्ली के मिम्बर पर बैठकर मुस्लिमों को सम्बोधित किया था। उनका भाषण वेद मन्त्रों के उच्चारण से आरम्भ हुआ था। मुझे लगता है कि आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा। यदि आप यह पंक्तिया पढ़े तो अपने विचार कृपया अवश्य लिखें। सादर।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख, मान्यवर ! मैं हमेशा ॐ का ही उच्चारण और जप करता हूँ.

    • मनमोहन कुमार आर्य

      नमस्ते महोदय। लेख पसंद आया, हार्दिक धन्यवाद। वैदिक ग्रंथो में ओम और गायत्री मन्त्र के जप की बहुत महिमा बताई गई है। आप इसका अभ्यास करते हैं यह अतीव प्रसन्नता की बात है। ओम को ही ओंकार, प्रणव व उद्गीथ भी कहते हैं। ओम ईश्वर का निज नाम है। इस एक नाम में ईश्वर के अनेक गुणवाचक नामो का समावेश है। ओम का जप अपने आप में पूर्ण उपासना है जिसे साधारण से साधारण व्यक्ति कर सकता है। मैं भी करता हूँ। आपका हार्दिक धन्यवाद।

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