बुजुर्गों की दुआएं बिक गईं
जवानी की सत्ता में रिश्तों का
बड़ा महंगा किराया हो गया।
बचपन गोद में खेला है जिसके
आज वो शख्स पराया हो गया।
संस्कारों की जड़ें भी लोभ ने
इस कदर खोखली कर दीं।
कि बुजुर्गों की दुआएं बिक गईं
और कर्ज भी बकाया हो गया।
न दे सके महलों की चमक मगर
तालीम,तहजीब,तजुर्बा तो दिया।
लेकिन आशीर्वाद का खजाना भी
चन्द ख्वाहिशों पे जाया हो गया।
खून खौलता है अपने ही खून पर
तन्हा जीने की तमन्ना बढ़ गई।
जर,जोरू,जमीन की जद्दोजहद में
शामे-महफ़िल का सफाया हो गया।