गीतिका/ग़ज़ल

सपनों को ओढना, पलकों को बिछोना कर दूं…

सपनों को ओढना, पलकों को बिछोना कर दूं।
आ तेरी चाह के दामन को, प्यार से भर दूं॥

जिसको सींचा है तुमने, आंसुओं के मोती से
आ उसी दर्द के सेहरा को मैं, गुलशन कर दूं….
आ तेरी चाह के दामन को, प्यार से भर दूं…

गम के बादल को, हवाओं के हवाले करके।
मुस्कुराहट से भरे, सुर्ख के सवेरे कर दूं…
आ तेरी चाह के दामन को, प्यार से भर दूं…

जुगनुओं से चुराके रोशनी, कतरा कतरा ।
तेरी रातों के इन अंधेरों को रोशन कर दूं..
आ तेरी चाह के दामन को, प्यार से भर दूं…

प्यासे होठों को शबनमी सी, ताजगी दे दूं।
सूनी आँखों को, नजारे हंसी नजर कर दूं…
आ तेरी चाह के दामन को, प्यार से भर दूं…

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

2 thoughts on “सपनों को ओढना, पलकों को बिछोना कर दूं…

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूबसूरत गजल !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    प्यारा गज़ल

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