कविता

तुम्हें क्या कहूँ तुम क्या हो

कमल कहूँ गुलाब कहूँ या कहूँ फूल पलाश का
चंदा कहूँ चाँदनी कहूँ या तारा कोई आकाश का
मेरी जान तुम क्या हो यह तुम भी नहीं जानती
मेरे रोम रोम में जो सिहरन पैदा क्र दे
वो नशा हो तुम…. और होसला हो विश्वास का।

झील कहूँ समुन्दर कहूँ या कहूँ नीर नयनधार का
यह जो तुम्हारी आँखे हैं
यह तोहफा हैं मेरे प्यार का
होंठों की शबनम क्या कहना
रस हैं यह यौवन ज्वार का
मेरे होंठों को जो शीतल कर दे
वो पेय हो तुम प्रेम खुमार का

मेनका कहूँ मृगनयनी कहूँ या कामायनी वसुंधरा
अंग अंग में उत्तेजना नस नस में योवन भरा
न रह पाऊं बिन आलिँगन
कैसे रहूँ  यह तो बता
न तरसाओ न तड़पाओ न ज़हर दो अब विरह का
मेरी जान तुम क्या हो यह तुम भी नहीं जानती
मेरे रोम रोम में जो सिहरन पैदा कर दे
वो नशा हो तुम…. और होसला हो विश्वास का!

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- mk123mk1234@gmail.com

2 thoughts on “तुम्हें क्या कहूँ तुम क्या हो

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर प्रेम कविता !

  • गुंजन अग्रवाल

    waah waah …prany nivedan ..laazawaab

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