ग़ज़ल
सोई सोई सी उम्मीदें जगा करती हैं रातों में
यादें भी तो फुसलाया करतीं हैं बातों बातों में
उम्मीद में बैठे थे हम प्यार और वफाओं के
अनदेखा कर तल्खी भेजते है वो सौगातों में
अपलक निहारती है नजरें फुरकत में उनको
जाने किस आस में पलकें बिछाए हैं हातों में
नादिर प्यार समेटे खङे है हम उनकी राहों में
कतरा कतरा बटोरते दिखते वो रिश्ते नातों में
हिसाब मांगता है हमसे दिल उस मुहब्बत का
जाने नजरे झुकाए क्या ढूंढते है वो खातों में
दुहाई दिया करते है वो जिंदगी की जरूरतों की
कैसे कहें दिल की जरुरतें मुकम्मल जज्बातों में….
— मीनू झा
बहुत अच्छी गजल !
umda gazal ..meenu ji