गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सोई सोई सी उम्मीदें जगा करती हैं रातों में
यादें भी तो फुसलाया करतीं हैं बातों बातों में

उम्मीद में बैठे थे हम प्यार और वफाओं के
अनदेखा कर तल्खी भेजते है वो सौगातों में

अपलक निहारती है नजरें फुरकत में उनको
जाने किस आस में पलकें बिछाए हैं हातों में

नादिर प्यार समेटे खङे है हम उनकी राहों में
कतरा कतरा बटोरते दिखते वो रिश्ते नातों में

हिसाब मांगता है हमसे दिल उस मुहब्बत का
जाने नजरे झुकाए क्या ढूंढते है वो खातों में

दुहाई दिया करते है वो जिंदगी की जरूरतों की
कैसे कहें दिल की जरुरतें मुकम्मल जज्बातों में….

— मीनू झा

मीनू झा

शैक्षिक योग्यता स्नातक (अंग्रेजी) स्नातकोत्तर (एम.बी.ए) (वित्त व मार्केटिंग में विशेषज्ञता) लेखन-रूझान कई भाषण व वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में विजेता-उपविजेता तीन सालों से ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय संपर्क निवेदित कुमार झा,एम एच-309,सी आई एस एफ कॉलोनी,पानीपत रिफाईनरी के निकट,पानीपत,हरियाणा फोन नंबर 9034163857/9570473537

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी गजल !

  • गुंजन अग्रवाल

    umda gazal ..meenu ji

Comments are closed.