कविता

बस प्रभु का सहारा

बस प्रभु का सहारा,
कुछ आंसू आँख से बहते है, कुछ दिल को लोग जलाते हैं
करते हैं काम वो दुश्मन के, पर फिर भी दोस्त कहाते हैं
ऐसे यारों की कमी नहीं ‘दिल’ फेंक मेरा दिल बहलाते है,
पर जब जलता है घर मेरा, अपने हाथ सेंक रह जाते हैं,
सही सोचा और सही बयां किया,उनके ऊपर से निकल गया
वह मेरी हर सीधी बात का भी, बस ‘उल्टा’ अर्थ लगाते हैं,
कुछ लोग यहाँ बातों बातों में , बनते हैं बड़े बड़े ‘बलिदानी’
पर वक़्त ज़रुरत पड़ने पर, वोह कैसे कैसे आँख चुराते हैं,
झुक झुक करते हैं सलाम, जब काम निकलता है उनका,
जब मदद कोई दरकार हुई ,बस वह मुंह फेर रह जाते हैं,
हम सच्चे मन से जब प्रभु चरणों में अपना शीश झुकाते है,
इतनी हो जाती दया प्रभु की, हम अपनी झोली भर लाते हैं,

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

One thought on “बस प्रभु का सहारा

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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