मेडिकल सेवाओं हेतु कुछ सुझाव
एक आम नागरिक की पाती मोदी सरकार के नाम
मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेकर मानवसेवा का मार्ग को चुनने वाले प्रतिभाशाली स्टूडेंट्स के (राष्ट्रीय हितों की दृष्टि से भी) बेहद कीमती समय को किसतरह निरर्थक कर दिया जाता है, एक नजर –
- पहले साल में ही पूरे साल भर तक प्रत्येक विद्यार्थी के प्रति दो सप्ताह के पांच दिनों तक दो दो घंटे तक (लगभग दस टीचर्स के 30 घंटे) हीमेटोलाजी और बायोकेमिस्ट्री लेब में उन्हें वे प्रैक्टिकल करवाए जाते हैं, जिन्हें वे अपनी प्रैक्टिस की जिन्दगी में कभी नहीं करने वाले हैं I
- पहले साल में ह्यूमन लेब में अनेक ऐसे प्रैक्टिकल (पेरिमेट्री, स्टेथोग्राफ़ी, बाबा आदम के जमाने के उपकरण से स्पायरोमेट्री) करवाए जाते हैं, जिन्हें वे अपनी प्रैक्टिस की जिन्दगी में कभी नहीं करने वाले हैं I
- फ्राग के डिसेक्शन बन्द किए जा चुके हैं, ऐसी स्थिति में फ्राग की मसल्स और हार्ट से सम्बन्धित ग्राफ्स को पढ़ाने में अनावश्यक रूप से प्रत्येक विद्यार्थी के लगभग पन्द्रह (टीचर्स के 36 – 42) घण्टों को नष्ट (वेस्ट)करने का क्या औचित्य है, जबकि 2 घंटे में पॉवर पॉइंट प्रजेंटेशन से यह सब कुछ पढ़ाया जा सकता है I
- उन्हें घर पर उक्त सभी प्रैक्टिकल्स की विधियां, उनमें रखी जाने वाली छोटी से छोटी सावधानियां, उपकरणों और रसायनों की अतिविस्तृत जानकारियां, और उनसे जुड़े प्रश्न भी याद करना पड़ते हैं, फ्राग के जिन प्रैक्टिकल्स को कभी नहीं किया हैऔर न ही भविष्य में जरूरत पड़ेगी, उनके विद्युतीय प्रायमरी और सेकेण्डरी सर्किट्स को भी याद करना पड़ता है I फिर इन्हें महंगी जर्नल्स खरीद कर उनमें लिखना भी होता है I प्रैक्टिकल्स को लिखने और उनको चेक करवाने के लिए अपना कीमती समय नष्ट करते हैं I टीचर्स का भी समय नष्ट होता है I
- एनाटामी में एम्ब्रियोलाजी के चित्र और हिस्टोलाजी के चित्र बनाना भी एक बेहद समयसाध्य काम होता है, न जाने कितने घण्टों की बली यूं ही दे दी जाती है I
- इसकी बजाय एक मृत मानव शरीर पर दस विद्यार्थियों को आतंरिक संरचना दिखाने की अनिवार्यता की जाए तो ज्यादा लाभ होगा I
- जबकि मानव शरीर की सूक्ष्म आंतरिक रचना जानना एक चिकित्सक के लिए बेहद जरूरी है, वह नगण्य और उपेक्षित मान लिया गया है I सोचिए जरा, 140-150 विद्यार्थियों के बीच 14-15 लाशों की बजाय दो या तीन लाशें हों तो वे क्या ख़ाक डिसेक्शन कर पाएंगे और सूक्ष्म रचनाओं की बारीकियां भला कैसे समझेंगे ? कई बार लगता है कि उन्हें डिसेक्शन हाल में एक एक दूरबीन दे देना चाहिए ताकि फालतू बातों में समय नष्ट करने की बजाय दूर से ही सही लाशों के स्थूल स्ट्रक्चर तो देख पाएंगे I
मेरा विनम्र और सुचिन्तित सुझाव है कि उनके इस व्यर्थ हो रहे कीमती समय का सदुपयोग करते हुए उन्हें फर्स्ट इयर में ही उन्हें निम्नांकित जनोपयोगी विधाएं सिखायी जाना चाहिए –
- घाव पर पट्टी बांधनाऔर सिम्पल घाव पर टांकें लगाना,
2. क्रिटिकल केयर का सैद्धांतिक और सम्भव हो तो प्रैक्टिकल ज्ञान,
3. इंट्रा मस्कुलर और खून की नस में इंजेक्शन लगाना,
4. देश में आमतौर पर होने वाली दस पन्द्रह मौसमी बीमारियों का क्लीनिकल डायग्नोसिस (निदान) और प्राथमिक रूप से निरापद उपचार,
5. शिक्षक के मार्गदर्शन में अपने शहर के उन नागरिकों का स्वास्थ्य परीक्षण, जिनका कभी स्वास्थ्य परीक्षण नहीं हुआ हो और उनका स्वास्थ्य पत्रक (हेल्थ कार्ड) बनाने का प्रोजेक्ट I
6. रोगी की हिस्ट्री टेकिंग का विस्तृत ज्ञान,
7. आपदा प्रबन्धन (डिजास्टर मैनेजमेंट),
8. स्थानीय संसाधनों से संतुलित आहार बनाए जाने पर नागरिकों और स्कूली विद्यार्थियों को भाषण देना सिखाना और पॉवर पॉइंट प्रजेंटेशन से स्वास्थ्य चेतना के सामान्य सूत्र बताना I
आखिर कब तक आम नागरिक की उपेक्षा चलती रहेगी ?
प्रस्तुति – डॉ. मनोहर भण्डारी