सत्य-असत्य
इस संसार में——- शुभ-अशुभ दोनों ही,
हम सभी के आत्मा के आंशिक प्रकार है।
अशुभ— मनुष्य के प्रत्यक्ष स्वरूप का ही,
आत्मा का बाहरी— आवरण आकार है।
शुभ आत्मा का—— सबसे करीब में ही,
रहने वाला——- निकटतम आवरण है।
मनुष्य के अशुभ स्तर को छिन्न करते ही,
वह शुभ के स्तर तक पहुंच—- जाता है।
बहुत से लोग– इस स्तर तक पहुँचते ही,
आत्मा रूपी—–सत्य को पाकर धन्य हैं।
उनके जीवन में शुभ संस्कार के आते ही,
अनवरत कार्य के साथ सतकर्म करते हैं।
उनके इस धरती पर उपस्थित मात्र से ही,
मानव जाति के लिए— महान वरदान है।
ऐसे व्यक्ति के उपस्थित हो जाने पर ही,
घोर दुरात्मा भी——- संत बन जाता है।
मनुष्य को– इस प्रकार की मानवता ही,
हर बूरा कार्य- करने से रोक सकता है।
मूह की बोली एक—- अनुभव है दूसरी,
दर्शन शास्त्र– मंदिर सम्प्रदाय ठिक है।
परन्तु जब होता है -इनका प्रत्यक्षानुभूति,
ये सब वाकई में बहुत पिछे छुट जाते हैं।
न्याय युक्ति,बौद्धिक व्यायाम,जरूरी नहीं,
अगर जो सत्य को–प्रत्यक्ष कर लिया हो।
रमेश कुमार सिंह
२४-०७-२०१५
बहुत ही होनहार रचना प्रिय मित्र रमेश सिंह जी, सादर बधाई कलम की नैतिकता के लिए……
सब आपकी कृपा है श्रीमान जी सादर धन्यवाद!! सादर नमन!!
आज कल कहाँ है मान्यवर दिखाई नहीं पड़ते, आशीर्वाद मित्रवर रमेश सिंह जी